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________________ परिशिष्ट १५९ यह तो निश्चित है कि ये श्वेताम्बर मान्यता वाले हैं। यह ४८ यत्र विधि उपरोक्त यत्र विधि से बहुत कुछ अलग है। दोनो ही यत्र विधि के मानने वाले अपने-अपने रूप में इसे वास्तविक मानते हैं। एक तीसरा मत परम्परागत मान्यता वाला है। इसमे यत्र तो नहीं है परन्तु मत्र अवश्य हैं। इनकी संख्या १९ हैं। इनमे प्रस्तुत मत्रो मे उपरोक्त कथित ४४ ऋद्धि मत्रो का एव अतिरिक्त कुछ विद्याओ का समावेश किया गया है। परन्तु, स्तोत्र की सफलता उसके पधो मे ही निहित है। यत्रप्रिय युग मे आकर्षण बनाये रखने हेतु इन प्रचलित मान्यताओ को स्वीकृति दी गई हो, ऐसा स्पष्टत प्रतीत होता है। स्तोत्र मे ऊर्जान्वित अक्षर विशुद्ध Vibration उत्पन्न करते हैं और ये आदोलन हमारी मनोकामना के अनुसार फल देना प्रारभ करते हैं। साधना करते समय साधक के अग मे से निकलते स्रावो को किसी विशेष पदार्थ मे किसी विशेष पद्धति से संचित करके उससे अपने कार्य को सिद्ध करने की प्राचीन प्रणाली मत्र-यत्र के आकर्षण का कारण रही है। ताड़पत्र, भोजपत्र, सुवर्णपत्र, ताम्रपत्र या रजतपत्रो पर यत्र का आलेखन कर इस शक्ति का उपयोग किया जाता है। विशेष परिस्थितियो मे भक्तामर स्तोत्र की चमत्कारिक विस्तृति को वर्धमान करने हेतु इन आचार्यों ने इस प्रणाली का प्रचार किया। इस सृष्टि में कुछ धातुएँ, सूत, कुकुम, धागा, केशर, कपूर आदि भावान्वित पदार्थ माने जाते हैं। इस कारण इनका उपयोग कर साधक की एकाग्रता और आकर्षण को बढ़ाया जा सकता है। __ अत मे, यदि आप मेरे निजी अभिप्रायो को ही समझना चाहते हो तो मेरे लिए यह अनुभवसिद्ध है कि भक्तामर स्तोत्र स्वयंसिद्ध मत्र है, यत्र है। परम शक्ति-पुज है। परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण के भावो मे ये सब कुछ इसी मे निहित हैं। इसके लिए अन्य किसी विधि-विधान-प्रयोग या पदार्थ की आवश्यकता नहीं है। केवल भावपूर्वक स्तोत्र के पारायण से ही इसमे पूर्ण सफलता उपलब्ध है। किसी भी लौकिक मनोकामना के लिए इस स्तोत्र का उपयोग करना इस साधना सृष्टि के साथ मैं अन्याय समझती हूँ। किसी प्रकार की प्रतिकूलता का आना यह हमारे ही पापकर्म का कारण है। भावपूर्वक नमस्कार के साथ किया जाने वाला स्तोत्र पाठ इन पाप और कर्मों की निर्जरा करता है और विशिष्ट पुण्य का सपादन भी।जो सहज मिलता है उसे मागकर क्यो लिया जाय? परम समर्पण के भावों मे दृढ़ मन स्थिति के सामने परिस्थिति का कोई मूल्य नहीं होता है। परिस्थिति में परिवर्तन यह ससार का नियम है और मन स्थिति की दृढ़ता से परिस्थिति पर विजय, यह साधना का नियम है। अत नमस्कार के भावो के साथ नियमित स्तोत्र पाठ जीवन की सफलता का एक सार्थक प्रयोग है। प्रश्न ५-अधिकांश लोग चमत्कारों के कारण भक्तामर स्तोत्र को मानते हैं। इस बारे में आपका क्या अभिप्राय है? क्या वर्तमान काल में आपको इस स्तोत्र के चमत्कार का कोई अनुभव हुआ है?
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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