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________________ परिशिष्ट १६१ बम्बई रहते थे। उस समय पहली बार उन्होने प्रवचन के द्वारा इस स्तोत्र का महत्व सुना। फलत उनके मन मे स्तोत्र के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई। तद्भूत जिज्ञासाओ के शमन के लिए ये प्रतिवर्ष हमसे सपर्क करते रहे। इस चातुर्मास की पूर्णाहुति पर लाल भवन मे इन्होने शीलव्रत एव नियमित भक्तामर स्तोत्र पारायण का नियम लिया। जयपुर से अहमदाबाद लौटने के तीन-चार दिन बाद अचानक पेट मे भयकर दर्द हुआ। बढ़ती हुई इस वेदना ने दो-तीन दिन बाद अस्पताल मे भयकर रूप ले लिया। परिणामत डॉक्टरो ने इसकी काफी गभीरता बताई। इनकी धर्मपली श्रीमती मधुकान्ताजी घबरा गईं। इसी समय प्रवीण भाई ने कहा कि तुम घबराओ मत, परन्तु भक्तामर स्तोत्र के ४६ वे पद्य का पाठ कर इसका अभिमत्रित जल मुझे पिलाओ। मुझे विश्वास है कि इससे मुझे आराम हो जायेगा। अपने परिचर्या काल मे भी आप नियमित स्तोत्र पाठ पारायण करते रहे। इसी दृढ़ता, एकाग्रता एव परमात्मा के प्रति रही श्रद्धा ने डॉक्टरो की घबराहट के बीच मे भी स्वस्थता का सफलता पूर्ण समाधान प्रस्तुत किया। यह तो अहमदावाद की घटना है, परन्तु अभी-अभी चातुर्मास काल मे अमरजैन मे डॉ पारस सूर्या के पास करीब २२ वर्षीय लड़की का एक केस आया था। इसकी अस्वस्थता का निदान करते हुए डॉ ने तरह-तरह के इलाजो से उपचार किया। खून की कई बोतले चढ़ने के बाद भी जब कोई परिणाम नही आया तब स्वय डॉ ने अतिम उपचार करते हुए उसके पिता से कहा कि अंतिम इलाज अब हो रहा है। अब तो इस बेटी के प्रारब्ध पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। आप एक काम कीजिए। पास मे लालभवन मे साध्वी जी म सा से सम्पर्क करें। जो इलाज दवा से नही होता है वह दुआ से हो सकता है। _____ डॉ सूर्या जी के इस इलाज को अजमाने के लिए वे भाईसाब लालभवन आये और पू दर्शनप्रभाजी म सा से बात करते हुए उन्होने अपनी चिता व्यक्त की। उनकी अभिव्यक्ति को सुनकर पू दर्शनप्रभा जी म सा ने उन्हें खड़े रहकर भक्तामर स्तोत्र का पाठ कर अभिमंत्रित जल लड़की को पिलाने का कहा। प्रयोग के कुछ ही घटो मे पुत्री को स्वस्थ हुई जानकर वे प्रसन्न हुए। डॉ पारस को भी उन्होने इस वास्तविकता से अनुभूति करवाई। आज भी डॉ पारस जी कहते हैं- जब मुझे किसी के भी इलाज मे अधिक खतरे की सभावना लगे तब मै नवकार मन्त्र का स्मरण कर इलाज करता हूँ तो दर्दी स्वस्थता पाते हैं, मैं आश्वासन पाता हूँ। यह मेरी अपनी अनुभूति है। और इससे मै यह मानता हूँ कि आराधना से साधक की ऊर्जा मे परिवर्तन सभव है। ____ आबू पर्वत पर Sunset Point है। प्रात काल यह बहुत ही सूना रहता है। अनुयोग प्रवर्तक पू श्री कन्हैयालालजी महाराज शाहपुरा के सेवाभावी गजेन्द्र मेहता के साथ परिभ्रमण करते हुए स्थंडिलभूमि के लिए पर्वत की एक उपत्यका पर पारे थे। लौटने की तैयारी मे थे उसी पस्त दहाड़ता हुआ एक शेर लपलपाती हुई ऑखो के साथ सामने खड़ा हो गया।शेर को सामने देखकर वातावरण भयाक्रान्त हो गया। राजेन्द्र मेहता
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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