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________________ . मुंहता नैणसीरी ख्यात [७३ नहीं।' तरै कागळ खोल वाच दीठो । कागळ मांहै लिखियो-"जु गढ .. मत द्यो।" तरै मेवड़ो मार खेजड़ी हेलै वळ दियो । पछै छाप दिखाय गढ लियो । वळे आतां कसवण बोलियो । तरै रावळ पूछियो; तरै सवणी कह्यो-"जु इंण गढ सवो रावळरो नाम रह्यो चाहीजै नै . पाछोपो नहीं रहै ।" पछै रावळ घड़सी घड़सीसर तळाव करायो । पछ वरस ३ मास ६ राज कियो। पछै भीम जसहड़ोतरै बेटे तेजसी चूक करनै रावळ घड़सीनूं तळहटी वावड़ी छ त? गोठ कीवी' । रावळजी पधारिया सु वे उतावळा हुया घोड़ासूं उतरतां पहला झटको वाह्यौ सु माथो तूट पड़ियो । धड़ घोड़ो लेनै गढ ऊपर विडरियो थको ले आयो' । पछै प्रोळ रांणी ढकाई । पछै राहड़ वेळा ताई मांहै तेजसी वांसे हुवो आयो । तरै ऊपरलै भाटा नांखिया । तेजसीरो कितरोहेक साथ मारांणो, तरै तेजसी परो नाठो । तरै रांणी विमळादे दीठो, 'रावळरै टीकानूं भाई बेटो को नहीं । गढ किण। दीजै ?" तरै विमळादे रजपूतांनूं कह्यो-"कोई इसड़ो रजपूत, जिको पांच-सात दिन गढ राखै", तितरै म्है मूळराजरो पोतरो', देवराजरो बेटो बारू-छाहिण केहर, रांणा रूपड़ारो दोहीतो उरो प्रांणां ।' तरै [ यह पीछेका पीछे पाया सो ठीक नहीं है। 2 तब उसके पासका पत्र लेकर खोला और पढ़ देखा। 3 तव उस मेवड़ोको (दूतको) ही मार कर खेजड़ी (शमी) वृक्षके नीचे उसकी बलि दे दी। 4 फिर शाही मुद्रा वाला फरमान दिखा कर गढ पर अधिकार कर लिया। 5 आते हुए फिर अपशकुन हुआ। 6 इस गढके साथ रावलका नाम तो रहना चाहिये, परंतु उसका वंशज कोई नहीं रहेगा। 7 भीम जसहड़ोतके वेटे तेजसीने तलहठीकी बावड़ी पर रावल घड़सीको दगेके साथ एक गोठ दी। 8 रावलजी वहां आये और फुर्तीके साथ ज्योंही वे घोड़ेसे उतर रहे थे, उतरनेके पहिले ही (तेजसीने) तलवारका प्रहार किया जिससे (घड़सीका) सिर टूट पड़ा। 9 घड़सीके कटे हुए धड़को घोड़ा हांफता और घबराया हया गढ पर ले आया। 10 रानीने गढकी पोलें बंद करवा दीं। II पीछे संध्या समय(?) होते-होते तेजसी भी पीछे भागा हुअा अाया। 12 तब ऊपर वालोंने उस पर पत्थर बरसाये। 13 तेजसीके कितनेक साथी मारे गये। 14 तब तेजसी भाग गया। 15 तब राणी विमलादेने विचारा कि रावलके पीछे गद्दीधरोंमें भाई-वेटा कोई नहीं है। 16 गढ किसके सुपुर्द किया जाय । 17 कोई ऐसा राजपूत है जो पांच-सात दिन तक गढकी रक्षा करे। 18 जितने में हम मूलराजके पौत्रको। 19 देवराजके वेटे केहरको जो राणा रूपड़ेका 'दोहिता है, वारू-छाहिणसे बुला लें।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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