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________________ १०२ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात सुरतांणसूं दीवांण संचित तांण सर' तुड़ताण । दे पांण जमदढ पांण दाखव रांण जिम रढरांण ॥ आरांण कज सझ डांण ऊभो मछर अवळीमांण" । वाखांण प्रथी प्रमाण वाधै भांण जिम कुळ-भांण ।। ५ कंधार-साह जियार' कोपिय कीध मुख हलकार । तिण वार धर अहिकार निय तन सझै भूपत सार1 ।। भुज भार भर जणियार'' भाटी खार-बँध वध खार14 । हर हार हुव दरबार हूंता वळे थाट विडार ॥ ६ दळपत्त छत्रपत मालदे, गढपत्त गोत्र-गवाळ । सतदत्त लूणकरन्न समवड़ा वडै विरद विसाळ । जैतसी देवीदास जग-पुड़' सत्रां-चांपण-सींव । उज्जले सोही कीध उज्जळ भूप परियां भींव ।। ७ प्रांक १७ रावळ कल्याणदास हरराजरो', रावळ भींव मुंवां पछ 1 पाट बैठो। वरस १४ मास ६ दिन १५ जेसळमेर राज कियो। सुसतो सो ठाकुर हुवो। रजपूतां, परंज-लोगसूं भली पर पाळी । डील निपट जवरो हुतो । पाट बैठां पछै एक बार अजमेर पातसाहरी हजूर गयो हुतो, बीजो गढ ऊपर बैठो रह्यो । नै आप जीवतां दोड़ण-धावणरी सारी मदार कंवर मनोहरदास ऊपर हुई । एक वार रावळ भीम जीवतां कोढणा ऊपर कल्याणमल मेलियो हुतो" सु ऊहड़ गोपाळदासनूं मारियो । ____ वारा। 2 शीघ्र। 3 कटार। 4 हठी, प्रतिज्ञा-पालनके लिये मरने वाला वीर। 5 युद्ध। 6 चौहान क्षत्री (मत्सर, अभिमान)। 7 अभिमानी। 8 बढता है। 9 जिस समय। 10 अधिकार (अभिमान) | II तलवार। 12 जिस समय । 13 क्रोधी। 14 क्रोध। 15 अपने वंशकी रक्षा करने वाला। 16 समान। 17 पथ्वीतल पर। 18 शत्रुओं (के देशों) की सीमाओं पर अधिकार करने वाला। 19 (१) श्रेष्ठ, (२) पूर्वज। 20 रावल कल्याणदास हरराजका पुत्र। 21 मरनेके बाद । 22 ढीला ठाकुर हुअा किन्तु राजपूतों और प्रजाजनों से अच्छी प्रीति पाली। 23 बहुत मोटे शरीरका था। 24 इसके सिवाय गढमें ही बैठा रहा। 25 अपने जीवनगादमें ( युद्धादिमें ) दौड़ने-भागनेका सारा आधार कुंवर मनोहरदास पर रहा । 26 भेजा था।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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