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________________ ( १५ ) महाराज प्रतापसिंह का जन्म पौष कृष्णा द्वितीया संवत् १८२१ वि० को जयपर में हुआ था। इनकी माता चूँडापत जी थी जिन्होंने इनके बड़े भाई पृथ्वीसिह और इनकी बाल्यावस्था में समस्त राज्यकाय का संचालन स्वयं अपने हाथों किया था। अपने ज्येष्ठ बन्धु पृथ्वोसिंह के किशोरावस्था में ही कालकवलित हो जाने पर ये वैशाख कृष्णा ३ बुधवार सं० १८३५ को १५ वर्ष की आयु में जयपुर की गद्दी पर बैठे । ये प्रत्युत्पन्नमति और दूरदर्शी थे अत: शीघ्र ही इन्होंने राज्य को बागडोर सँभाल ली और राज्य के अन्तरङ्ग शत्रुओं का निःशेष कर दिया । इन्हीं क समय में माचेड़ी के राव प्रतापसिंह द्वारा अलवर राज्य की स्थापना, तू गे का युद्ध, अवध के नबाब वजीर अली (वजीरुद्दौला) का अंग्रेजों को समर्पण, तथा अनेक मरहठों के युद्ध प्रभृति कितनी ही ऐतिहासिक घटनाएं संगठित हुई जिनका विस्तृत उद्धरण यहां अप्रासङ्गिक एवं अनावश्यक है। 'बजनिधि मन्थावली' में स्व० पुरोहित श्रीहरिनारायणजी ने इनके शरीर का वर्णन इस प्रकार किया है :___ "इन महाराजा का शरीर बहुत सुडौल और सुन्दर था। वे न तो बहुत लम्ब थे और न बहुत ठिंगने । न बहुत माटे थे न बहुत पतले । उनके बदन (शरीर ) का रंग गेहुआँ था। उनके शरीर में बल भी पर्याप्त था। बाल्यावस्था म उन्होंने शास्त्र-शिक्षा के साथ साथ युविद्या की भी शिक्षा पाई थी, जैसा कि उस जमाने में और उससे भी पूर्व राजकुमारों के लिये आनवाय नियम था । महाराजा का स्वभाव भी बहुत अच्छा था। वे हँसमुख, मिलनसार, उदार और गुण-ग्राहक प्रसिद्ध थे। जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है वे राजनी।त में भी पटु थे।" ___ उक्त उद्धरण से महाराजा प्रतापसिंह के व्यक्तित्त्व का भव्य चित्र स्वतः नेत्रों के सम्मुख साकार हो उठता है । महाकवि भोलानाथ ने भी प्रस्तुत नाटक में इन शब्दों में इनका सुन्दर वर्णन किया है "सूर्यः साक्षामित्रवर्गण रूपे साक्षात्कामः कामिनीभिर्व्यलोकि ।। चन्द्रः साक्षाल्लोचनैः सज्जनौधैः साक्षादिन्द्रो भूमिपैः श्रीप्रतापः ॥ १७ ॥ (क० कु० प्र० कु०१७) * पं० हनुमान शर्मा चौमू ने अपने 'नाथावतें के इतिहास' में इनका राज्यारोहण वैशाख कृष्णा ४ सं. १८३६ बुधवार को होना तथा स्व० पु० हरिनारायणजी
SR No.010595
Book TitleKarn Kutuhal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1957
Total Pages61
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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