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________________ वर्तमान में कवि के वंशज श्री मनोहरलाल शुक्ल विद्यमान हैं और अध्यापनकार्य करते हैं । से ज्ञात होता है कि कवि भोलानाथ सम्राड़ शाहजहां द्वितीय ! से मिले थे और जयपुर में श्री माहिजी प्रथम के समय में ही आ गये थे तथा श्री प्रतापसिंहजी के समय में ही सम्भवत: दिवङ्गत हुए | सम्वत १८४० में महाराजा प्रतापसिंह के द्वारा थे. 'महाकवि' की उपाधि से विभूषित हुए। इनके पुत्र शिवदास के नाम ग्राम गोकुलचन्द्रपुरा का पट्टा फागण बढ़ी २ संवत १८४६ में इनकी मृत्यु पर हुआ अ इनका समय सं०. १८४६ तक है । 1 ·, 1 'महाकविरुदविभूति भोलानाथ ने ब्रजभाषा, पंजाबी, खड़ीबोली हिन्दी, एवं संस्कृति सभी तत्कालीन प्रचलित मुख्य भाषाओं में सुन्दर रचना की है । 'कविरनुहरतिच्छायाम' सूक्त्यनुसार कविकुलगुरू कालिदास की रचना की अनुकरण सुन्दरता के साथ आपके संस्कृत पद्यों में पाया जाता है, जो रसग्राही सहृदये मिलिन्दों को सद्यः समा कपि करता है । अनेक स्थानों पर अलंकारों का सन्निवेश मनोरम और सहज स्वाभाविक लगता है । प्रसादगुणयुक्त, वैदर्भीरीतिसम्पन्न कोमलकान्तपदावली सहृदयों को स्वतः बलादिव नियोजितः की भांति परितृप्त कर देती है । इनके प्राप्त ग्रंथों का थोड़ा सा परिचय इस प्रकार है: 414 i १. श्री कृष्णलीलामृतम, कृष्ण-भक्तिपरक श्रीमद्भागवत कथात्मक काव्य ( संस्कृत 'भाषा में ) v २. सुख निवास (सं० १८३० में लिखितः ठाकुर चतुरसिंह प्रीतये, ब्रजभाषा में गीतगोविंद कार्यानुवाद (भावात्मक) ' T ३. नायिका - भेद (सं० १=१८ में लिखित, नवलसिंह प्रीत्यर्थ ब्रजभाषा का लंका "" रिक ग्रन्थ.. 1 ४. नखशिख भाषा (सं० १५३० में लिखित, हिन्दी भाषा में शृंगारिक ग्रंथ ) ५. मंगलानुराग ( नवलसिंह प्रीत्यर्थ, नीति एवं प्रशस्ति-परक ग्रंथ ) ६. युगल - विलास (युगल सिंह प्रीत्यर्थ शृंगार विषयक ग्रंथ ) ७. इश्कलता (सं० १८२७, पंजाबी भाषा में कुबर गोपालसिंह प्रीत्यर्थ निर्मित) 5. लीला-पच्चीसी (सूरजमल के पुत्र नाहरसिंह प्रीत्यर्थ विविध विषयात्मक १०७ पर्दो 1 कासंग्रह) 7 i ६. भगवद्गीता (मंवलसिंह की प्रेरणा से नाहरसिह प्रीत्यर्थ गीता का पचानुद ग्रह केवल' १३ अध्याय पर्यन्त उपलब्ध है । 4 १०. नैपथ (सं० १८४० में प्रथमसर्ग मात्र का पद्यानुवाद उपलब्ध है । ११. सुमन प्रकाश (नायिका भेद) (आलंकारिक ग्रंथः सं० १-२७ में लिखित १२. महाभारत का पद्यानुवाद (अपूर्ण) केवल भीष्म पर्व का उपलब्ध है। १३. भागवत दशम स्कन्ध पद्यानुवाद (नवलांसह प्रीत्यर्थं सं० १८२६ में लिखित । "
SR No.010595
Book TitleKarn Kutuhal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1957
Total Pages61
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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