SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 5 ) १४. लीला-प्रकाश (सं० १८२० में लिखित विविध विषयक पद्यों युक्त) १५. प्रेम पच्चीसी १६. कर्ण-कुतूहल (संस्कृत नाटक) इनके अतिरिक्त विप्रलब्ध शृंगार-वर्णनपरक विविध-विषयक स्फुट पद्य भी उपलब्ध होते हैं जिनसे कविकी सर्वतोमुखी प्रतिभा एवं वेदुष्य का अच्छ। परिचय प्राप्त होता है। कवि के ग्रंथों का साधारण अध्ययन करने से प्रतीत होता है कि ये मौजी एवं रसिक प्रकृति के आलंकारिक कवि थे । इन्हें कवित्व के संस्कार जन्मजात रूप में ही प्राप्त हुए थे। कर्णकुतूहल में कवि ने अपना थोड़ा सा परिचय इस प्रकार दिया है: “तातो यस्य समस्तशास्त्रनिपुणः श्री नन्दरामाभिधा माता यस्य च पौष्करीति विदिता पत्यर्चने तत्परा । वासो 'देवकलीपुरे' निगदितो यत्रास्ति कालेश्वरो 'भोलानाथ' इति प्रसिद्धिमगमत् तत्काव्यमेतच्छुभम् ॥१॥" इनकी संस्कृत में केवल दो ही कृतियां उपलब्ध होती हैं। एक कर्ण-कुतूहलम् और दूसरी श्रीकृष्णलीलामतम। अपर कृति में १०४ पद्य हैं जिनमें श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के आधार पर भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाओं का सरम वर्णन हुआ है । ऐसा जान पड़ता है कि महाराजा प्रतापसिंहजी द्वारा संवत् १८४७ में प्रतिष्ठापित जयपुर के प्रसिद्ध हवामहल स्थित श्रीगोवर्द्धननाथजी के मन्दिर से इस रचना का सम्बन्ध है। कृति के अन्त में कवि का यह पद्य अवलोकनीय है "श्रीप्रतापस्य नृपतेः न्यवसन सुखसद्यनि श्रीरामस्वामिनो+ भर्ता गोवर्द्धनधरः प्रभुः ॥१०४॥" इस प्रकार इनकी दोनों उपलब्ध संस्कृत कृतियां तो यहां पर प्रकाशित की जा रही हैं। अन्य अवसर पर शेष हिन्दी रचनाओं पर भी यथाशक्य प्रकाश डालने का प्रयास किया जायगा। * हवामहलों में स्थित श्री गोरर्द्धननाथजी के मन्दिर में कीर्तिस्तम्भ पर यह लेख उत्कीर्ण है। "श्री गोरधन नाथजी को भींदर बणायो हवामहल श्री मन्महाराजाधिराज राजे श्री सवाई प्रतापसिहजी देव नामाजी मिती माहा सुदी १३ बुधवार सं० १८४७"
SR No.010595
Book TitleKarn Kutuhal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1957
Total Pages61
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy