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________________ ११५ इम्पीरियलिज्म | बल्कि असहाय पक्षियोंके लिये स्वभावतः निष्ठुर व्यक्तिकी अपेक्षा शिकारियोंका दल बहुत अधिक कष्टदायक है । जो लोग इम्पीरियलिज्म के व्यानमें मस्त हैं इसमें सन्देह नहीं कि वे लोग किसी दुर्बलकं स्वतंत्र अस्तित्व और अधिकारके सम्बन्धमें बिना कातर हुए निर्मोही हो सकते हैं । संसारमें सभी और इस बात के दृष्टान्त देखने में आते हैं 1 यह बात सभी लोग जानते हैं कि फिनलैण्ड और पोलैण्डको अपने विशाल कलेवर में बिलकुल अज्ञात रीतिसे अपने आपमें पूरी तरह से मिलानेक लिये रूस कहाँतक जोर लगा रहा है । * यदि रूस अपने मनमें यह बात न समझता कि इम्पीरियलिज्म नामक एक बहुत बड़े स्वार्थ के लिये अपने अधीनस्थ देशोंकी स्वाभाविक विषमताएँ बलपूर्वक दूर कर देना ही आवश्यक है तो उसके लिये इतना अधिक जोर लगाना कदापि सम्भव न होता । रूस अपने इसी स्वार्थको पोलैण्ड और फिनलैण्डका भी स्वार्थ समझता है । लार्ड कर्जन भी इसी प्रकार कह रहे हैं कि अपनी जातीयता की बात मुलाकर साम्राज्य के स्वार्थको ही अपना स्वार्थ बना डालो । यदि यह बात किसी शक्तिमानसे कही जाय तो उसके लिये इससे डरने का कोई कारण नहीं है; क्योंकि वह केवल बातोंसे नहीं भूलेगा । उसके लिये इस बात की आवश्यकता है कि वास्तवमें उस बात से उसका स्वार्थ अच्छी तरह सिद्ध हो । अर्थात् यदि ऐसे अवसरपर कोई उसे बलपूर्वक अपने दलमें मिलाना चाहेगा तो जबतक वह अपने स्वार्थको भी यथेष्ट परिमाण में विसर्जित न करेगा तबतक उसे अपने * गत महायुद्धके कारण यह स्थिति बिलकुल लुप्त हो गई है। - अनुवादक ।
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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