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________________ राजा और प्रजा। छोटे बड़े सभी यंत्री आदिसे अन्त तक बिलकुल घबरा गए थे । और जब साधारण भारतीय अँगरेजोंके मनमें तरह तरहके स्वाभाविक कारणोंसे एक बार इस प्रकारका विकार उत्पन्न हो गया है, तब उसका जो फल है वह बराबर फलता ही रहेगा। राजा कैन्यूट जिस प्रकार समुद्रकी तरंगोंको रोक नहीं सका था उसी प्रकार गवर्नमेन्ट भी इस स्वाभाविक नियममें बाधा नहीं दे सकती। प्रश्न हो सकता है कि तब फिर क्यों व्यर्थ ही यह आन्दोलन किया जाता है अथवा हमारे इस प्रबन्ध लिखनेकी ही क्या आवश्यकता थी ? हम यह बात एक बार नहीं हजार बार मानते हैं कि सकरुण अथवा साभिमान स्वरमें गवर्नमेन्टके सामने निवेदन या शिकायत करनेके लिये प्रबन्ध लिखनेकी कोई आवश्यकता नहीं है। हमारा यह प्रबन्ध केवल अपने जातिभाइयोंके लिये है। हम लोगोंपर जो अन्याय होता है अथवा हम लोगोंके साथ जो अविचार होता है उसके प्रतिकारका सामर्थ्य स्वयं हम लोगोंको छोड़कर और किसीमें नहीं है। कैन्यूटने समुद्रकी तरंगोंको जिस स्थानपर रुकनेके लिये कहा था समुद्रकी तरंगें उस स्थानपर नहीं रुकीं-उन्होंने जड़ शक्तिके नियमानुसार चलकर ठीक स्थानपर आघात किया था। कैन्यूट मुँहसे कहकर अथवा मंत्रोंका उच्चारण करके उन तरंगोंको नहीं रोक सकता था लेकिन बाँध बाँधकर उन्हें अवश्य रोक सकता था । स्वाभाविक नियमके अनुसार, यदि हम आघात-परम्पराको आधे रास्तेमें ही रोकना चाहें तो, हम लोगोंको भी बाँध बाँधना पड़ेगा, सब लोगोंको मिलकर एक होना पड़ेगा, सबको समहृदय होकर समवेदनाका अनुभव करना पड़ेगा।
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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