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________________ ७७ सुविचारका अधिकार । हैं। दूसरी ओर मुसलमान लोग राजभक्तिके मारे अवनतप्राय होकर कांग्रेसके उद्देश्यमार्गमें बाधास्वरूप खड़े हो गए हैं। इन्हीं सब कारणोंसे अँगरेजोंके मनमें एक प्रकारका विकार हो गया है-सरकारका इसमें कोई हाथ नहीं है। केवल इतना ही नहीं है बल्कि अँगरेजोंके मनमें कांग्रेसकी अपेक्षा गोरक्षिणी सभाओंने और भी अधिक खलबली डाल दी थी। वे लोग जानते हैं कि इतिहासके प्रारम्भकालसे ही जो हिन्दू जाति आत्मरक्षाके लिये कभी एकत्र नहीं हो सकती वही जाति गोरक्षाके लिये तुरन्त एकत्र हो सकती है। इसलिये, जब इसी गोरक्षाके कारण हिन्दुओं और मुसलमानोंके विरोधका आरम्भ हुआ तव स्वभावतः ही मुसलमानोंके साथ अँगरेजोंकी सहानुभूति बढ़ गई थी। उस समय अविचलित चित्त और निष्पक्ष भावसे इस बातका विचार करनेकी शक्ति बहुत ही थोड़े अँगरेजोंमें थी कि इस समय कौन पक्ष अधिक अपराधी है अथवा दोनों ही पक्ष थोड़े बहुत अपराधी हैं या नहीं । उस समय वे डरते हुए सबसे अधिक इसी बातका विचार किया करते थे कि यह राजनीतिक संकट किस प्रकार दूर किया जा सकता है। हमने साधनाके तीसरे खंडमें 'अँगरेजोंका आतंक' नामक प्रबन्धमें सन्थालोंके दमनका उदाहरण देकर दिखलाया है कि जब आदमी डर जाता है तब उसमें मुविचार करनेका धैर्य नहीं रह जाता और जो लोग जानबूझकर अथवा बिना जानेबूझे डरका कारण होते हैं उन लोगोंके. प्रति मनमें एक निष्ठुर हिंस्रभाव उत्पन्न हो जाता है । इसी लिये, गवर्नमेन्ट नामक यंत्र चाहे जितना निरपेक्ष रहे लेकिन फिर भी, चाहे यह बात बार बार अस्वीकृत कर दी जाय, इस बातके लक्षण स्पष्ट रूपसे पहले भी दिखलाई देते थे और अब भी दिखलाई देते हैं कि गवर्नमेन्टके
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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