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________________ ७९ सुविचारका अधिकार । हमारा यह अभिप्राय नहीं है कि हम लोग दल बाँधकर विप्लव करें--और फिर हम लोगोंमें विप्लव करनेकी शक्ति भी नहीं है। लेकिन दल बाँधनेपर जो एक बृहत्त्व और बल आ जाता है उसपर लोग बिना श्रद्धा किए नहीं रह सकते । और जबतक कोई व्यक्ति या समाज अपनी ओर श्रद्धा आकृष्ट न कर सके तब तक उसके लिये सुविचार आकृष्ट करना बहुत ही कठिन होता है। लेकिन बालूका बाँध क्योंकर बाँधा जा सकता है ? जो लोग अनेक बार मारे पीटे जा चुके हैं फिर भी जिन्होंने कभी आजतक एका करना सीखा ही नहीं, जिन लोगोंके समाजमें फूटके हजारों विष-बीज छिपे हुए हैं वे लोग कैसे एक किए जा सकते हैं ? आजकल उत्तरसे लेकर दक्षिणतक और पूर्वसे लेकर पश्चिमतक सारी हिन्दू जातिका हृदय दिन पर दिन अलक्षित भावसे केवल इसी विश्वासके कारण ही परस्पर निकट खिंचता आ रहा है कि अँगरेज लोग हम लोगोंके हृदयकी वेदनाका अनुभव नहीं कर सकते और वे औपधों के द्वारा हमारी चिकित्सा न करके उलटे हमारे हृदयपर कड़ी चोट पहुँचाते और हमारे हृदयकी व्यथाको चौगुना बढ़ानेके लिये उद्योग करते हैं। लेकिन केवल इतनेसे ही कुछ नहीं हो सकता। हम लोगोंकी जाति अब भी हमारे जातिभाइयोंके लिए ध्रुव आश्रयभूमि नहीं बन पाई है। इसीलिये हम लोगोंको बाहरकी आँधीका उतना डर नहीं है जितना कि स्वयं अपने घरकी बालूकी दीवारका भय हैं । तेजें बहनेवाली नदीके बीचके प्रवाहकी अपेक्षा उसके किनारेकी शिथिल बन्धन और खिसलनेवाली जमीनको बचाकर चलना होता है । हम जानते हैं कि बहुत दिनों तक पराधीन रहनेके कारण हम लोगोंका जातीय मनुष्यत्व और साहस पिसकर चूर चूर हो गया है।
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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