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________________ (१२९) हाथजोड या अर्ज हमारी ।मानो तो याही घरी रे॥ परत्रियाको पातक मोटो। डालो क्यों न परी रे॥पि५॥ होनहार जैसी बुद्धि आवे । उपजन अंग खरीरे ।। हीरालाल कहे चंदके राहू।कुमतियोंआणफिरी रेपिद ॥रावणको भभीक्षणकी शिखामण।।आसावरी-राग।। तेरी टारी कैसे टरे ।यातो ज्ञानीयोंशाखभरेरे ॥ टेर ॥ पुश्कल वेलां देदेहेला । समझायाही सरेरे ॥ बंधव हमारा प्राणसे प्यारा। ताते पांव परेरे ॥तेरी॥ जो कछु हवा सोतो हुवा । अबही चित्त धरेरे॥ पाछली भूल चेते नरकोई । तो पण काज सरे रे।तेरीर दियां परनारी टले घात थारी। यूं जानत सबके घरेरे॥ यो ऋषिवाणी सुणी अगवाणी।तें क्यों भूल परीते३ युद्धमें शूरा प्राक्रम पूरा । कोइसे ना डरेरे ॥ ठाडे रणखेत तेगवल तोकी । वैरीको प्राण हरे रेशाते?
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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