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________________ ( १२८ ) महाराज चक्र गयो फेरफेरीजी ॥ फेर उसी चकके साथ उनकी हो गइ ढेरीजी || जब लिया राजलंकाका तीन खंड मांही ॥ महाराज हरिलाल कहे जीत के करना जी || नहीं ६ ॥ मंदोदरी राणीकीरावणको हित शिक्षा ॥ आसावरी - राग ॥ पियू अपनासे अर्ज करी रे। प्रेमदाअतिप्रेमभरी रे || टेर || पुरुषोतम श्री रामचन्द्रकी । नारी कायको हरी रे ॥ आफंदवेल घेर मति घालो | सुनतांमें नाथ डरी रे॥ पि१ ॥ तुम घर रमणी है अति सुन्दर। कौनसी चूक परीरे ॥ निजघर संपतिता के विरानी ।ताकीतो भूलखरी रे। पि२॥ सुग्रिवादिक संग मिलायो । मानो उदधि तरी रे ॥ युद्ध करणको आवे लंका। जीतोगा कैसेकरीरे॥पि ३ ॥ कुंभकरण इन्द्रजीत अंगद | जो तुम मदत करी रे ॥ सोतो रामके दलमें बन्धिया।छोडावोनाथखरी रे॥ पि४ |
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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