SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उ. जमालि अरणगार । उ. प्र. ५२६ म. स्वामी से जमालि अरणगार ने क्या कहा था ? देवानुप्रिय ! आपके अनेक शिष्य छद्मस्थ हैं, लेकिन केवलज्ञानी नहीं हैं, किन्तु मैं तो सम्पूर्ण केवलज्ञान से युक्त अर्हत्, जिन और केवलज्ञानी हूं।" प्र. ५२७ जमालि की बात सुनकर गौतम ने क्या कहा था ? t उ. जमाल की आत्म-स्तुतिपरक वाणी सुनकर गणधर गौतम ने प्रतिवाद करते हुए कहा"जमालि ! केवलज्ञान और केवलदर्शन कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जिसे बताना पड़े । केवलज्ञानी कहीं छिपा रहता है ? केवल ज्ञान के दिव्य प्रकाश को अगाध समुद्र, गगन चुबो पर्वत मालाएँ और अंधकार भरी गुफाएँ भी अवरुद्ध नहीं कर सकती हैं । तुम्हें यदि कोई ज्ञान हुआ है तो मेरे प्रश्नों का उत्तर दो । प्र. ५२८ गणधर गौतम ने जमालि से कौन से प्रश्न 1 पूछे थे ? उ. लोक शाश्वत है या अशाश्वत ? जीव शाश्वत है या अशाश्वत ?
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy