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________________ ( ११० ) से छुपी नहीं थी, पर क्षीर सागर का अनंत जल साँपो के लोटने से कभी जहरीला हुआ 7 उ. - है ? प्रभु उसी गंभीरता के साथ बोले--- . " गोशालक ! तुम भ्रांति में हो । जिस तिल - क्षुप वह वहीं पर .. दब गया और 1 को तुमने उखाड़ फेंका था, कुछ समय बाद गाय के खुर से उसी दिन वर्षा हो जाने से वह पुनः भूमि में अंकुरित हो गया । किसी के आयुष्य बल को क्या कोई समाप्त कर सकता है ? यह वही पौधा : है, और इसकी एक फली में वही सात फूल सात तिल बनकर पैदा हुए हैं । श्रद्धाहीन गौशालक ने तिल के पेड़ से फली तोड़ी तो ठीक उसमें सात तिल निकले । गौशालक की वाचा चुप हो गई, पर उसके हृदय में उथल-पुथल मच उठी । इस घटना से वह नियतिवाद का कट्टर समर्थक बन गया । प्र. २६५ गौशालक ने तेजोलेश्या प्राप्त करने के लिए साधना कहाँ पर की थी ? श्रावस्ती नगर में हालाहला नामकी संपन्न कुम्हारिन रहती थी। वह आजीवक मत की
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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