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________________ ( १११ ) अनुयायी थी, गोशालक भी अपने को इसी संप्रदाय का भिक्षुक बताता था। वह श्रावस्ती में उसी कुम्हारिन की शाला में ठहर गया, और वहाँ तेजोलेश्या की साधना में लग गया । छह मास की कठोर तपश्चर्या एवं प्रतापना के बल पर गोशालक ने सामान्य तंजोलब्धि प्राप्त कर ली । प्र. २६६ गौशालक ने अपनी शक्ति का परीक्षण किस पर किया है ? उ. गौशालक को संशय हुआ कि मेरी शक्ति महावीर जैसी प्रभावशाली है या नहीं, अतः इसका परीक्षण करने के लिए वह नगर से बाहर निकला । पनघट पर नगर की महिलाएँ पानी भर रही थीं । गौशालक ने एक महिला के भरे हुए घड़े पर कंकर से निशाना मारा, घड़ा फूट गया, महिला पानी से तर हो गई । भिक्षुक वेषधारी की इस शरारत पर महिला को बहुत क्रोध आया, वह गालियाँ बकने लगी । गोशालक तो पहले ही अग्निपिंड था, गालियाँ सुनते ही भड़क उठा और श्राव देखा 4
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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