SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०७ ) उ. ही वैश्यायन की तेजोलेश्या शांत हो गई। गौशालक की जान में जान आई। तापस ने अपने से प्रखर शक्तिशाली साधक का प्रतिरोध देखा, तो वह विनय से झुक गया और वहाँ खड़ा नम्र शब्दों में बोला-" जान लिया प्रभो ! आपकी शक्ति का अद्भुत प्रभाव जान लिया।" प्र. २५६ म. स्वामी से गौशालक ने क्या पूछा था ? गौशालक घबराया हुआ तो था ही। तापस की संकेत भाषा में वह कुछ भी समझ नहीं पाया। बोला-"प्रभो! यह यो का पिण्ड ( शय्यातर ) क्या बक-वक कर रहा है ?" प्र. २६० म. स्वामी ने गौशालक के प्रश्न का क्या उत्तर दिया? प्रभु ने उसे समझाया-"अभी वह तुझे भस्म कर डालता। तेरे कटु आक्षेपों से ऋद्ध हो तुझे भस्म करने के लिए उसने अपनी तेजोलेश्या छोड़ी थी। यदि मैंने शीतलेश्या का प्रयोग न किया होता, तो तू जलकर राख हो जाता। मेरी शीतल प्रयोग के उत्तर में ही वह मुझसे क्षमा मांग रहा है। 띠
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy