SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लगा और बोला-दुष्ट, तपस्वी से मजाक! ठहर जा! अभी तुझे तेरी करनीका फल चखाता हूं--और क्रोधाविष्ट तापस ने कुछ कदम पीछे हटकर एक भयंकर तेजस् (तेजोलेश्या) आगन्सा दाहक धूम्र गौशालक पर फेंका। न. २५७ तेजोलेश्या देखकर गौशालक ने क्या किया था ? तेजोलेश्या देखकर गौशालक के तो होश उड़ गये सिर पर पैर रखकर भागा प्रभु महावीर की ओर-"प्रभु ! मरा, मरा! बचायो ! यह आग मेरा पीछा कर रही है।" च. २५८ म. स्वामी ने गौशालक को चिल्लाते देखकर क्या किया था? गौशालक की करुण चीख ने श्रमण महावीर के अन्तस को द्रवित कर दिया । करुणा का प्रवाह फूट पड़ा। अग्नि-सा धधकता धूम्र गौशालक पर आता देखकर तुरन्त उन्होंने अपनी शीतल तप:शक्ति ( शीतल तेजोलेश्या) का प्रयोग किया, बस उस महाश्रमण के नयनों में ही अमृत भरा था, अमियः दृष्टि से देखते
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy