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________________ (१९) सूरिमन्त्र कल्प:- इस मन्त्र की महिमा प्राचीन जैन साहित्य में विशेष रही है। ऐसा कहा गया है कि प्रत्येक गच्छनायक को इसकी साधना करनी चाहिए। आचार्य मेरूतुङ्ग द्वारा रचित 'सूरिमन्त्र कल्प' रहस्यों से भरी हुई है। (२०) यदुवंश सम्भव कथा:- यह भी आचार्य मेरूतुङ्ग द्वारा रचित संस्कृत मे निबद्ध महाकाव्य है। इसके विषय में विस्तृत जानकारी नहीं है मात्र नामोल्लेख मिलता है। (२१) नेमिदूत महाकाव्य:- श्री पार्श्व ने नेमिदूत नामक एक महाकाव्य की रचना भी आचार्य द्वारा माना है इस महाकाव्य का नामोल्लेख 'अंचलगच्छदिग्दर्शन' में पृ. २२३ पर किया है। (२२) कृदवृत्ति:- कृदवृत्ति आचार्य मेरूतुङ्ग द्वारा रचित 'कातन्त्र व्याकरण' की टीका का एक खण्ड ही है। ऐसा श्री पार्श्वनाथ ने अंचलगच्छदिग्दर्शन मे उल्लेख किया है। (२३) कातन्त्र व्याकरण बालबोध वृत्ति:- इसकी रचना विक्रम संवत १४४४ में किया है। इसको पहले ‘कालापक व्याकरण' नाम से जाना जाता है। इस ग्रन्थ का दूसरा नाम 'आख्यातवृत्ति टिप्पणी' भी है।' ___ (२४) उपदेश चिन्तामणि वृत्ति:- इसकी रचना आचार्य मेरूतुङ्ग ने कब की इसका वर्णन ठीक से नही मिल पाता है। इस ग्रन्थ में ११६४ श्लोक की रचना संस्कृत वृत्ति में की है। (२५) नाभकनृपकथा:- यह श्री मेरूतुङ्ग द्वारा रचित गद्य एवं पद्यमयी रचना है। इसमें २९४ श्लोक हैं। इसकी रचना विक्रम संवत् १४६४ अंचलगच्छदिग्दर्शन श्री पार्थ पृ. सं. २२९
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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