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________________ 72 मे की गई है। इसमे यह उल्लेख किया गया हैकि दुर्व्यय करने वाले मनुष्य किस प्रकार दुःख भोगते है। (२६) सुश्राद्ध कथा :- इस ग्रन्थ के विषय में विशेष जानकारी नहीं मिल पाती है परन्तु इस ग्रन्थ की रचना आचार्य द्वारा हुई है ऐसा ग्रन्थो द्वारा ज्ञात होता है। (२७) चतुष्कवृत्ति:- यह ग्रन्थ भी आचार्य मेरुतुङ्ग द्वारा रचित है इसमे विभिन्न व्याकरण सम्बन्धी विषयो पर चर्चा की गई है। (२८) अंगविद्योद्धारः - ( अंगविद्योद्धार) इस ग्रन्थ का उल्लेख 'श्री आर्य अध्याय गौतम स्मृति ग्रंथ' मे मेरूतुङ्ग सूरि रास मे अंचलगच्छदिग्दर्शन मिलता है। (२९) ऋषिमण्डलस्तवः - इस ग्रन्थ का उल्लेख श्री पार्श्व ने अंचलगच्छदिग्दर्शन में पृ. सं. २२३ में किया है इसमें ऋषियों की स्तुति की गयी है जो संस्कृत की कारिकाओं में निबद्ध है। * (३०) पट्टावली:- पट्टावली को श्री पार्श्व ने आचार्य मेरुतुङ्ग के रचनाओं में रखा अवश्य है । परन्तु इसकी भाषा, घटना आदि विविध विचारों के आधार पर इस ग्रन्थ को शङ्का की दृष्टि से देखा जाता है। इसके अतिरिक्त (३१) राजीमती नेमि सम्बन्ध (३२) सूरिमन्त्रोद्धार और अंचलगच्छदिग्दर्शन श्री पार्श्व सं. २२३ वहीं अंचलगच्छदिग्दर्शन श्री पार्श्व पृ. सं. २२३ वही अंचलगच्छदिग्दर्शन श्री पार्श्व पृ. सं. २२३ वही अंचलगच्छदिग्दर्शन श्री पार्श्व पृ. सं. २२३ वहीं अंचलगच्छदिग्दर्शन श्री पार्श्व पृ. सं. २२३ अंचलगच्छदिग्दर्शन श्री पार्श्व पृ. सं. २२३
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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