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________________ 70 (११) नमुत्थणंटीका:- चैत्यवन्दन विधि मे नमुत्थणं ग्रन्थ के सूत्रो पर वृत्ति के रूप मे इस ग्रन्थ की रचना की गई है। (१२) जीरावल्ली पार्श्वनाथ स्तवः - इसमें कुल १४ श्लोक हैं। मूल मे ११ श्लोक और अन्त मे ३ श्लोक | इस स्तव की रचना सर्प विष के निवारण हेतु किये थे। इसका आदि है ॐ नमो देवदेवाय । इस स्तव का दूसरा नाम त्रैलोक्यविजय महामन्त्र है । अचलगच्छ में इस मन्त्र का अत्यधिक महत्व (१३) सूरिमन्त्रकल्प सारोद्धारः - ५५८ श्लोक की रचना कवि ने इस ग्रन्थ मे की है जो कि शुद्ध संस्कृत भाषा में निबद्ध है। (१४) संभवनाथ चरित्रः- आचार्य मेरुतुङ्ग ने इस ग्रन्थ की रचना विक्रम संवत् १४१३ मे की है। (१५) शतपदी सारोद्धारः - इसका दूसरा नाम 'शतपदी समुद्धार' है। इसकी रचना १४५६ मे आचार्य ने किया है। (१६) जेसासी प्रबन्धः - इस ग्रन्थ के विषय में शङ्का है। श्री पार्श्व ने इसका भी उल्लेख किया है। ' (१७) स्तम्भक पार्श्वनाथ प्रबंधः- इसका मात्र नामोल्लेख मिलता है। इसकी रचना आचार्य ने संस्कृत भाषा में किया गया है। (१८) नाभिवंश काव्य :- आचार्य द्वारा रचित इस महाकाव्य का मात्र नामोल्लेख मिलता है। * अंचलगच्छ दिग्दर्शन श्री पार्श्व पृ. सं. २२३ पर। अंचलगच्छदिग्दर्शन श्री पार्श्व पृ. सं. २२० वही अंचलगच्छदिग्दर्शन श्री पार्श्व पृ. सं. २२२
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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