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________________ (४) धातुपरायण:- सप्ततिभाष्य मे इस ग्रन्थ का उल्लेख मिलता है। इसका समय विक्रम संवत १४४९ के पूर्व का माना जाता है। (५) रसाध्यान वृति :- इसका दूसरा नाम रसाध्यान टीका और रसालय भी है। कंकालय नामक एक जैनेतर आचार्य द्वारा प्रणीत इस रसाध्यान ग्रन्थ की आचार्य श्री ने विक्रम संवत १४४९ में टीका रची है। (६) सप्ततिभाष्य टीका :- जैन कर्म सिद्धान्त का इस ग्रन्थ में विचार किया गया है। इस ग्रन्थ का समय विक्रम संवत् १४४९ है। यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा मे रचित है जो कि आ. मेरूतुङ्ग के विद्वत्ता का परिचायक है। (७) लघुशतपदी :- इसका दूसरा नाम 'शतपदीसारोद्धार' है। लघुशतपदी में १५७० श्लोक है जो कि संस्कृत भाषा में निबद्ध हैं। इसमें कवि ने अपना नया विचार प्रस्तुत किया है। (८) कामदेव चरित्र :- इस गद्यकृति की रचना कवि ने विक्रम संवत् १४६९ मे की थी इसमें ७४९ श्लोक है इस प्रकार का उल्लेख ग्रन्थ . प्रशस्ति मे मिलता है: एवं श्रीकामदेवक्षितिपतिचरितं तत्वषड्वर्द्धि भूमिसंख्ये श्री मेरूतुङ्गाभिधगणगरूणा वत्सरे प्रोक्तमेतत् ।। (९) पद्मावतीकल्प:- प्रस्तुत रचना भी आचार्य मेरूतुङ्ग द्वारा की गई है। ऐसा उल्लेख 'अंचलगच्छदिग्दर्शन' श्री पार्श्व पृ. सं. २२३ पर तथा जीवन ज्योति नामक पुस्तक में पृ. सं. ११३ में मिलता है। (१०) शतक भाष्य:- इसका दूसरा नाम सप्ततिका भाष्य वृत्ति है ऐसा प्रतीत होता है परन्तु आचार्य श्री पार्श्व ने इसे भी आचार्य श्री के पृथक् ग्रन्थ की संख्या दी है। जीवन ज्योति पृ. सं. ११३ में शतपदी सारोद्धार नाम से उद्धृत है।
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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