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________________ ६० जेन्द्र पनिया दायां भाग लाया गया । सोलने पर उसमे बिल्कुल नये दम-दस रपये के नोटों को ऊची की गड्डी थी जिसके ऊपर उसी तरह के कपान-पान के नोट रमे हुए थे। जिन्द्र ने उन्हें लिफाफे में निकास कर उमी पनिफे मे रस दिया और लिफाफा वही मेज पर रहने दिया । वह सोगों में बा करता जाता था और लिफाफे की तरफ ध्यान नही देना चाहता था । फिर सहमा उसने विफाफा लिया और नोट बाहर निका । यह रहा था कि उसके आस-पास के लोग जल्दी-जल्दी वदनते जाते है । गायद कमरे मे भीड़ है और दूसरो को अवसर देने के लिए पोटो - चीत करने के बाद पहले वाले हटते जाते है। उसने नोटो गोगिना, पहले पाच वालो को, फिर दस वालो को । गिनते समय वह बाद घर सकता था कि वह लोगो के प्रति सावधान तो नही वन का है। उ लिया गिनती जाती थी और मुह बात करता जाता था । उगलिया गिनती चली गई और वह दग रह गया कि नोट तिने अधिक मो, टेट सौ, दो सौ तक को के लिए वह तैयार था। पान के नोटो के बाद दस के नोटों की गिनती तो पूरी ही नहीं हो रही थी। उनके कुछ समभ में नहीं आ रहा था कि यह बात क्या है । ही समाधान था कि यह उसकी योग्यता कानावर योग्यता किसी तरह बढ़ाकर नही दियाना नाहना था। और को भोट के प्रति भोर विनत दीपना चाहता था। नोटो की गिनती जिन लोगों के प्रति उनका भावभीना वटुना जाता था । मातृम नही गिनती feat देवा पूरी भी कि नहीं हुई। मेसिन राशि का अनुमान उसे ठीक बैट गया था । उसने फिर नोटों को यही दरी देवी में हाय टाला। वह धनने में हो पाने तरह-रह के उसमें एप के मिले हुए नोट्स में दोनों जेबों मे ठात् एक प अपने चारो में बसे भागन है । और बाहर गीचा। ये नो नदी पर द्वारा दिए | नींद में
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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