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________________ कप्ट પૂર है । स्वय टेलीवीजन पर जिस शालीनता से उसने व्यवहार किया वह मानो दूसरो को फीका कर देता था। चर्चा काफी फैली और काफी गहरी भी गई । अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज कोष उसने छुआ और मन के गहरे भेदो का भी भेद लिया । उस सब मे शैलेन्द्र ऐसा तैरता हुआ पार चला गया कि उसके साथियो को भी अचरज था। ____ कार्यक्रम पूरा होने पर सवको एक कमरे मे ले जाया गया जहा उपहार की व्यवस्था थी । वही उससे एक फार्म-रसीद पर दस्तखत कराया गया और दिलचस्प हल्की-फुल्की चर्चा होती रही । रेडियो के कुछ अन्य ऊचे अधिकारी उस समय साथ थे और वातावरण अपनी हनकी रगीनी मे उडता हुआ मानो सवको ऊचा ले जाने वाला था। शैलेन्द्र को वडा अच्छा लग रहा था । उसने घर की उदासी और निराशा को याद किया जो अव एकदम उपहास्य बन गई थी । वह देसता था कि विदेशी अमरीकी सज्जन लम्बे और ऊचे है। रूसी बन्धु उतने ही छोटे कद के हैं । दोनो के अग्रेजी के उच्चारण भी अनमिल है। दोनो मानो शैलेन्द्र को लेकर सम होते है, नहीं तो परस्पर विपम बने रहते है । दृष्टिकोण दोनो के अलग, व्यक्तित्व अलग । वह बातें करता जाता था और रह-रह कर दोनो को देखता जाता था। डील-डौल के लिहाज से स्मी वन्धु तगड़े ढग से खा रहे थे और अमरीकी धीमे-धीमे ग्राम उठा पाते थे। देसकर उसको तटस्थ प्रानन्द हो रहा था और वह चाहता था कि अमरीकी विद्वान इतने गम्भीर न रहे। फिर उसे ठीक-ठीक पता नहीं कि क्या हुआ । शायद वहा से उठ कर वे लोग एक-दूसरे कमरे मे ले जाए गए। शैलेन्द्र लोगो के ध्यान का केन्द्र था और विदेशी लोग अब उससे विछुड चुके थे । पर देगियों की तो भीड थी । नाना प्रकार के नाना लोग उससे बात करना चाह रहे थे । तरह-तरह के प्रश्न होते और वह अपने उत्तरी से एक चमत्कार पैदा कर देता था । इसी समय उनके सामने एक मोटा सा लिफाफा
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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