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________________ कष्ट बोलेन्द्र को विस्मय हुमा जय देवा मि देतीवोजन के सबसे बड़े अधिवारी उममी छोटी-सी बैठक में चले पा रहे है। उसपो और भी विस्मय हुआ यह सुनकर कि एक बडे महत्वपूर्ण परिगवाद मे उसे भाग लेना है और अभी साय चलना है । अधिकारी या व्यवहार म अम्पर्धनापूर्ण था और वह तज्ञ थे कि शैलेन्द्र ने उनका अनुनय अस्वीकार नहीं दिया है। "असुविधा के लिए क्षमा पीजिएगा । लेकिन । " "जी नहीं । जी नहीं .." "यह अनाचार है कि समय भी प्रापरी नहीं दिया जा रहा। लेरिन विदेश में जो मेहमान पाए है उनको पहले सयर गयी। ये अपने ममता बन्धुनो मे टेलीयोजन पर चर्चा करना पवाद गरेंगे। पताइए आपको छोर हा नहीं पाए ? गतिमा मह गट फिर भगामाी है।" "जी नहीं। जी नहीं।" बुटियोपचे नोगलेन्द्र मोर भी मिल ar हो नामी एक नाहियार यता मोजर पे । नाम RATोनसान धे जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय ग्यानि यो । रेन्द्रनार पर हुमा । लेकिन नभी हमने अपने गा मा गा पा प्राय गा, सनिय निरिमनार में उगो तर बगामे मोर चर्चा में सम्मिलित होगा। रजियानरमा भीरमा टीको माEिT or
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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