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________________ ( १२४ ) रिवाज तो नादिरशाह के अवतार स्थितिपालकी के घर में होता है। अगर वास्तव में किसी सुधारक में अपने घर में प्रात्रश्यक होने पर भी विधवाविवाह को कार्यरूप में परिणत करने की शक्ति नहीं है तो उसकी यह कमजोरी है । वह नैष्टिक सुधा. ग्क नहीं है, सिर्फ पाक्षिक सुधारक है । जिम प्रकार पानिक श्रावकों के होने से नैष्टिक श्रावकों का प्रभाव नहीं कहा जा सकता और न वेनिटनीय हो सकते हैं, उमी नरह पाक्षिक सुधारकों के होने स नैष्ठिक सुधारकों का प्रभाव नहीं कहा जासकता और न उनकी निंदा की जासकती है। आक्षेप (झ)-विधवाविवाह यूरुपियनो एव मोहमडनों (मुसलमानों) में भी अनिवार्य नहीं है, क्योंकि यह नीच प्रथा हैं। (श्रीलाल) समाधान योरोप में नो कुमारी और कुमारों का विवाह भी अनिवार्य नहीं है । फ्रॉस में तो इस कौमार्य का रिवाज इतना बढ़ गया है कि वहाँ जनसंख्या घट रही है। दूसरे देशों में भी कौमार्य का काफी रिवाज है। इसलिये विवाह भी एक नीच प्रथा कहलाई । श्राक्षपक को अभी कुछ मालम ही नहीं है । विधवाविवाह अनिवार्य न होने के कई कारण है । एक कारण यह है कि विधवा और विधुर होते होते किसी का आधा जीवन निकल जाता है व किसी का तीन चतुर्थांश या इससे भी ज्यादा जीवन निकल जाता है, ऐसे लोगों को इसकी आवश्यक्ता का कम अनुभव होता है। इसलिये वे लोग विवाह नहीं करते। नीचता के डर से वहाँ विधवाविवाह नहीं रुकते। अगर किसी जगह विधरविवाह नीच प्रथा नहीं कहलाता और विधवाविवाह नीच प्रथा कहलाता है तो इससे सिर्फ इतना ही सिद्ध
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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