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________________ (१२५ ) होता है कि वहाँ के लोग नीव मिथ्यात्वी, घोर अत्याचारी, महान् पक्षपाती और अत्यन्त मढांच हैं। इन दुर्गणों का अनुकरण करके जैनियों को ऐले मदांध पापी क्यों बनना चाहिये? आप (ञ) लॉर्ड घगनों में कनई विधवाविवाह नहीं होता । विधवाविवाह से उच्च नीच का भेद न रहेगा। ममाधान-लॉर्ड घगने का मतलब श्रीमन्त धगने मे है । लॉर्ड कोई जाति नहीं है। साधारण श्रादमी भी श्रीमन्न और महर्द्धिक बनकर लॉर्ड बन सकते है । इन भव में विधवा विवाह होता है। हाँ साधारण विधवाओं को अपना लॉर्ड घगने की विधवाएँ कुछ कम सख्या में विवाह कराती हैं। यह उच्चता नीचना का प्रश्न नहीं, किन्तु साम्पत्तिक प्रश्न है । लॉर्ड घगने की अपार सम्पत्ति छोड़कर विवाह कगना उन्हें उचिन नहीं जॅचना । जिन्हें जेंचना है वे विवाह कग ही लेनी है। दक्षिण के डेढ लाख जैनियों में, आर्यसमाजियों में, ब्रह्मसमा. जियों में, विधवाविवाह होना है परन्तु वे भंगी चमार नहीं कहलाते । । आक्षेप (ट)-सूरजमान का जीवदया की पुकार मचा. कर विधवाविवाह को कर्तव्य बनलाना अनुचित है । जीवदया धर्म है, न कि शरीर दया । मन्दिर बनवाना धर्म है और प्याऊ लगवाने से अधर्म है। अगर कोई व्यभिचारिणी कामभिक्षा माँगे तो वह नहीं दी जासकती। जो दया धर्मवद्धि का कारण है, वहीं वास्तविक दया है। (श्रीलाल) ममाधान-बेचारा आक्षेपक दान के भेदों को भी न समझा । उसे जानना चाहिये कि आत्मगुणों की उन्नति को लक्ष्य में लेकर जो दान दिया जाता है वह पात्रदान है, न कि दयादान । ढयादान नो शरीर को लक्ष्य में लेकर हो दिया'
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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