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________________ ( १२३ ) अभाज्यता किसी में नही है । बहिन माता आदि ये नातेदारी के शब्द है, इसलिये नातेदारी को अपेता से इनकी भोज्याभा. ज्यता की कल्पना की है। कुमारी और विधवा ये अवस्था. विशेष के शब्द है, इमलिये इनकी भाज्याभाज्यता अवस्था के ऊपर निर्भर है। जयना कुमारी या विधवा है तब तक अमोज्य हे जय उस कमारी या विधवा का विवाह हो जायगा तब वह भोज्य होजायगी । भोज्य तो बधू है, फिर भले ही वह कुमारी रही हो या विधवा । मातृत्व और भगनीत्व सम्बन्ध जन्म से मगण तक स्थायी है । कौमार्य और वैधव्य ऐसे सम्बन्ध नहीं हैं। उनको बदलकर वधू कामम्बन्ध स्थापित किया जाता है। स्त्री होने से ही कोई भोज्य नहीं होजाती, वधू होने से भोज्य होती हैं। मातृत्व, भगनीत्व अमिट है, कौमार्य और वैधव्य श्रमिट नहीं है । इमलिये माता और भगिनी के साथ विवाह नहीं किया जासकता किन्तु कुमारी या विधवा के माथ किया जा सकता है । आपक के भाक्षेपको अगर हम विधुर. विवाह निषेत्र के लिये लगावे तो आपक क्या उत्तर ढंगा ? देखिये-पातप-"कुमार और विधुर को पुरुष ममान ममझकर समान कर्तव्य बतलाना भूल है । पिता, भाई, पनि सभी पुरुष है, परन्तु भाई और पिना अभोज्य है, पनि माज्य है"। श्रानपक के पास इसका क्या उत्तर है ? वही उत्तर उसे विधवाओं के लिये लगा लेना चाहिये । आक्षेप (ज)-विधवाविवाह के पक्षपाती भी अपने घर की विधवाओं के नाम पर मुंह सकोड लेते है। समाधान-यह कोई आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक विधवा का विवाह जरूर करना चाहिये। अगर कोई विधवा विवाह नहीं करना चाहती तो सुधारक का यह कर्तव्य नहीं है कि वह ज़बर्दस्ती विवाह करदें । जबर्दस्ती विवाह करने का
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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