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________________ बाह्य कारण मीमांसा ४१ artureranaafeet ! तचया नातीतार्थाभावत उत्पद्यते, भावाभावयोः कार्यकारणभावविरोधात् । न वद्भावात्, स्वकाल एव तस्योत्पत्तिप्रसंगात् । किंच, पूर्वक्षणसत्ता यत समानसन्तानोत्तरार्थक्षणसत्त्वविरोधिनी ततो न सा तदुत्पादिका विरुद्धयोः सत्तयोरुत्पाद्योत्पादकभावविरोधात् । ततो निर्हेतुक उत्पाद इति सिद्धम् । , इस नयी दृष्टिमें उत्पाद भी निर्हेतुक होता है । यथा- जो उत्पन्न हो रहा है वह तो उत्पन्न करता नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर दूसरे क्षणमें तीनों लोकोंके अभावका प्रसंग प्राप्त होता है । अर्थात् जो उत्पन्न हो रहा है वह यदि उसी क्षणमें अपने कार्यभूत दूसरे क्षणको उत्पन्न करने लगे तो इसका मतलब यह हुआ कि दूसरा क्षण भी प्रथम क्षणमें उत्पन्न हो जायगा । इसी प्रकार प्रथम क्षणमें ही उत्पन्न होता हुआ वह दूसरा क्षण भी अपने कार्यभूत तीसरे क्षणको भी प्रथम क्षणमें उत्पन्न कर देगा । और इसी न्यायसे आगेके सब क्षणोंकी प्रथम समय में ही उत्पत्ति हो जायगी । और इस प्रकार प्रथम क्षणमें ही सबकी उत्पत्ति हो जाने पर दूसरे क्षणमें सबका अभाव हो जायगा । और इस प्रकार दूसरे क्षणमें तीनो लोकोंके सब पदार्थोंके विनाशका प्रसंग प्राप्त हो जायगा । जो उत्पन्न हो चुका है वह उत्पन्न करता है ऐसा मानना भी ठीक नही है, क्योंकि ऐसा मानने पर क्षणिक पक्षकी क्षति प्राप्त होती है । कारण कि प्रथम समय में वह स्वयं उत्पन्न हुआ और दूसरे क्षण में उसने कार्यको उत्पन्न किया और इसलिए उसे कमसे कम दो समय तक तो ठहरना ही होगा । किन्तु ऋजुसूत्र नय किसी वस्तु के दो क्षण तक रहना स्वीकार करता नही, अतः जो उत्पन्न हो चुका है वह उत्पन्न करता है यह पक्ष भी ठीक नहीं । यदि कहा जाय कि जो नाशको प्राप्त हो गया है वह उत्पन्न करता है तो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि अभावसे भावकी उत्पत्ति माननेमे विरोध आता है । तथा पूर्व क्षणका विनाश और उत्तर क्षणका उत्पाद इन दोनोंकी समानकालतासे भी कार्य कारणभावका समर्थन नही बन सकता । यथा-अतीत पदार्थके अभावसे तो नवीन पदार्थ उत्पन्न होता नहीं है, क्योंकि भाव और अभावमें कार्य कारणभाव मानने में विरोध आता है । अतीत पदार्थके सद्भावसे नवीन पदार्थ उत्पन्न होता है यह कहना भी ठीक नही है, क्योंकि ऐसा मानने पर अतीत पदार्थ सद्भाव कालमें ही नवीन पदार्थकी उत्पत्तिका प्रसंग प्राप्त होता है । दूसरे चूंकि पूर्व क्षणकी सत्ता अपनी सन्तानमें होनेवाले उत्तर अर्थrust सत्ता विरोधिनी है, इसलिये पूर्व क्षणकी सत्ता उत्तर क्षणकी
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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