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________________ कहते हैं वस्तुस्वभाव-मीमांसा ३३ पयोव्रतो न दष्यति न पयोऽत्ति वषिव्रतः । अगोरतो नोभे तस्मात्तत्वं त्रयात्मकम् ॥ ६० ॥ जिसने दूध पीनेका व्रत लिया है वह दही नहीं खाता, जिसने दही खानेका व्रत लिया है वह दूध नहीं पीता और जिसने गोरस सेवन नहीं करनेका व्रत लिया है वह दूध और दही दोनोंका सेवन नहीं करता । इससे सिद्ध है कि तत्त्व उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य इन तीनमय है ||६|| आशय यह है कि गोरसमें दूध और दही दोनों गर्भित है, इसलिये प्रत्येक तत्त्व (द्रव्य) द्रव्यदृष्टिसे धीव्यस्वरूप है, किन्तु दूध और दही इन दोनोंमें भेद है, क्योंकि दूधरूप पर्यायका व्यय होनेपर ही दहीकी उत्पत्ति होती है, इसलिए विदित होता है कि वही तत्त्व पर्यायदृष्टिसे उत्पाद और व्ययस्वरूप भी है । सर्वार्थसिद्धिमें इस विषयका और भी विशदरूपसे स्पष्टीकरण किया गया है । उसमें आचार्य पूज्यपाद कहते हैं चेतनस्याचेतनस्य द्रव्यस्य स्वा जातिमजहत उभयनिमित्तवशात्' भावान्तरावाप्लिरुत्पादनमुत्पाद, मृत्पिण्डस्य घटपर्यायवत् । तथा पूर्वभावविगमनं व्ययः । यथा घटोत्पत्तौ पिण्डाकृतेः । अनादिपारिणामिकस्वभावेन व्ययोत्पादाभावाद् ध्रुवति स्थिरीभवतीति ध्रुधः । ध्रुवस्य भाव. कर्म बा धीव्यम् । यथा मृत्पिण्डघटाद्यवस्थासु मृदाद्यन्वयः । तैरुत्पाद-व्यय- प्रोव्यं र्युक्तं उत्पाद-व्यय- ध्रौव्ययुक्तं सत् । [तत्त्वार्थसूत्र अ० ५ सू० ३०] अपनी-अपनी जातिको न छोड़ते हुए चेतन और अचेतन द्रव्यकी उभय निमित्तके वशसे अन्य पर्यायका उत्पन्न होना उत्पाद है । जैसे मिट्टी के पिण्डका घट पर्यायरूपसे उत्पन्न होना उत्पाद है ! उन्हीं कारणोंसे पूर्व पर्यायका प्रध्वंस होना व्यय है । जैसे घटकी उत्पत्ति होनेपर पिण्डरूप आकृतिका नाश होना व्यय है । तथा अनादि कालसे चले आ रहे अपने १. यहाँ पर निमित्त शब्द व्यवहार और निश्चय उभय कारणवाची है । तदनुसार निमित्त शब्दसे बाह्य निमित्त और निश्चय उपादान दोनोंका ग्रहण हुआ है । तात्पर्य यह है कि अपने-अपने निश्चय उपादानके अनुसार कार्यकी स्वयं उत्पत्ति में अज्ञानी जीव अपने प्रयत्न द्वारा या अन्य द्रव्य अपनी क्रिया द्वारा या उसके बिना ही निर्मित होता है । इसलिये टीकामे उभय निमित्तके यशसे उत्पन्न होना ऐसा कहा है । ३
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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