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________________ निश्वय-व्यवहारमीमांसा ३१५ शंका-स्थापना निक्षेपमें भी विकल्पको मुख्यता और द्रव्य निक्षेपमें तथा उसके भेद कर्म-नोकर्स में भी विकल्प की मुख्यता है । फिर इन्हें अलग-अलग परिगणित क्यों किया गया है ? समाधान - स्थापना निक्षेपमें अविनाभाव और कालप्रत्यासत्तिकी मुक्ता नहीं है जब कि द्रव्यनिक्षेपके भेद कर्म और नोकर्ममें अविनाभावके साथ कालप्रत्यासत्तिकी मुख्यता है । देखो, कोई व्यक्ति या पदार्थ सामने हो तो मात्र उसी समय उसको किसी अन्य वस्तुमें कल्पना द्वारा उपासना नही की जायगी। किन्तु कार्य-कारणमें विवक्षित वस्तु अपना कार्य कर रही है, फिर भी उसे गौण कर कालप्रत्यासत्तिवश वह कार्य अन्यका कहा जाता है या उससे उत्पन्न हुआ कहा जाता है। इस प्रकार इन दोनोंमे महान् भेद है | शंका- प्रतिकृति तैयार करते समय कभी-कभी वह व्यक्ति या वस्तु सामने होती है या बुद्धिपूर्वक उसे सामने रखकर उसकी प्रतिकृति बनाई जाती है ? समाधान - उस समय वह व्यक्ति या वस्तु उस प्रतिकृतिरूप कार्यका निमित्त है, इसलिये वहीं द्रव्यनिक्षेपकी मुख्यता है, स्थापनानिक्षेपकी नहीं । इतना अवश्य है कि नाम, स्थापना और द्रव्यनिक्षेप ये तीनों विकल्पप्रधान होनेसे व्यवहारका विषय है । इसी दृष्टिसे आगममें इन्हें द्रव्यार्थिकनयमें परिगणित किया गया है। इसी प्रकार मेदव्यवहारमे भी विकल्पकी मुख्यता होनेसे वह भी व्यवहारनयमें परिगणित किया गया है। अध्यात्म में भेदव्यवहारको जो स्थान मिला हुआ है वह इसलिये नहीं कि भेदव्यवहारके विषयको लक्ष्यमें लेनेसे स्वभावभूत आत्माकी प्राप्ति होती है, बल्कि इसलिये कि चाहे असद्भूत व्यवहारनय हो या सद्भूत व्यवहारनय हो दोनों ही परमार्थकी प्राप्ति में उपेक्षणीय हैं, क्योंकि उनके विषयको लक्ष्य में लेने पर विकल्पकी चरितार्थता बनी रहती है । इसलिए ये दोनों प्रकारके ही व्यवहार कर्मबन्धके हेतु माने गये हैं। यदि यह कहें कि वे कर्मबन्धस्वरूप हैं तो भी कोई अत्युक्ति नहीं है । इस प्रकार उपचार पदसे क्या अर्थ ग्रहण किया गया है इसका स्पष्टोकरण किया । १४ व्यवहारनयका विवेचन इस प्रकार विवक्षित विकल्प, उपचार और व्यवहार ये तीनों एका
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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