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________________ .. . क्रम-नियमितपर्यायमीमांसा . २२९ (२) अपने इस पक्षके समर्थन में वे उदीरणा, उपशम, संक्रमण, अपकर्षण और उत्कर्षणको भी उपस्थित करते हैं। कर्मस्थितिका परिणाम विशेषको तथा अन्य बाह्य कारणोंको निमित्तकर घटकर उदयमें निक्षिप्त होना उदीरणा है। उपरितन स्थितिमें स्थित कर्मपरमाणुओंका उदयावलिके बाहर निक्षिप्त होना अपकर्षण है। जिस प्रकृतिका बन्ध हो रहा हो उसी प्रकृतिको अधःस्तन स्थितिमें स्थित कर्म परमाणुगोंका वर्तमान बन्धके अन्तर्गत उपरितन कर्णस्थितिमें निक्षिप्त होना उत्कर्षण है तथा किसी भी प्रकृतिके परमाणुओंका अपनी सजातीय प्रकृतियोंमे संक्रमित होना संक्रमण है। ये चारों कार्य प्रायः प्रयोगविशेषसे होते हैं, इसलिए कौन कब हो इसका कोई नियम नहीं किया जा सकता। जब जिसके अनुकूल निमित्त मिलते है तब वह होता है, अतएव सभी पर्यायें क्रमनियमित ही हैं ऐसा कहना योग्य नहीं है। (३) आगममें जो यह कहा गया है कि अधिक-से-अधिक अर्धपुद्गल परिवर्तन काल शेष रहने पर सम्यक्त्वकी प्राप्ति होती है सो उसका यह अर्थ है कि जब सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है तब अधिक-से-अधिक अर्धपुद्गल परिवर्तन काल शेष रहता है। सम्यग्दर्शनको यह जीव कब प्राप्त करे इसका कोई नियम नहीं है। आगममें जो यह कहा गया है कि सम्यग्दर्शनके बलसे यह जीव अनन्त कालका छेद करता है सो इस कथनसे ही उक्त अभिप्रायकी पुष्टि होती है इसलिए भी सभी पर्याय क्रमनियमित ही होती हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता। (४) उक्त महानुभावोंका यह भी विचार दिखलाई देता है कि बाह्य सामग्रीमे निमित्तता उसको स्वभावगत योग्यता है। यह इसीसे स्पष्ट है कि अव्यवहित पूर्व समयमें उपादान रूपसे द्रव्यके अवस्थित रहने पर भी यदि कार्य रूपसे परिणमानेवाली बाह्य सामग्री नहीं मिलती या प्रतिकल बाह्य सामग्री उपस्थित रहती हैं तो कार्य नहीं होता। इससे भी सभी पर्यायें क्रम नियमित ही होती हैं यह नहीं सिद्ध होता । (५) कर्म और आत्मामें जो संश्लेषरूप सम्बन्ध है वह असद्भावरूप नहीं है। यह बात आचार्य अमृतचन्द्रके 'न जातु रागादिनिमितभावम्' ( कलश १७५ ) इस कलश काव्यसे ही स्पष्ट है। इसीलिये कर्म अपने उदय और उदीरणा द्वारा जीवको विविध अवस्थाोंके होने में प्रेरक : निमित्त होता रहता है। अन्यथा कर्मकी बलबत्ता नहीं स्वीकार की जा
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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