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________________ क्रम-नियमितपर्यायमीमांसा स्वकालके प्राप्त होने पर ही होते हैं। जैसे पर्यायरूपसे शुब हुए द्रव्योंकी प्रति समयकी पर्याय अपने-अपने नियत स्वकालमें ही होती हैं, क्योंकि उनके होनेमें निमित्तभूत अन्य कोई बाह्य प्रेरक ( कर्ता) सामग्रो न होनेसे उनके अपने-अपने नियत स्वकालमें होनेमें कोई बाधा नहीं आती। किन्तु पुद्गल स्कन्धोंकी और संसारी जीवोंकी सब या कुछ पर्यायें बाह्य प्रेरक ( कर्ता) सामग्री पर अवलम्बित हैं, इसलिये वे सब अपनेअपने निश्चय उपादानके अनुसार एक नियत क्रमको लिए हुए ही होती हैं, ऐसा कोई सुनिश्चित नियम नहीं है। क्योंकि बे बाह्य प्रेरक सामग्रीके बिना नहीं हो सकतीं और बाह्य प्रेरक सामग्री पर है, इसलिये जब जैसी बाह्य प्रेरक सामग्रीका योग मिलता है उसीके अनुसार वे होती हैं और इसका कोई नियम नहीं है कि कब कैसी बाह्य प्रेरक सामग्री मिलेगी, इसलिये पर्यायरूपसे अशुद्ध हए द्रव्योंकी पयायें प्रतिनियत क्रमसे हो होती हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता। ऐसा माननेवालोंके कहनेका यह अभिप्राय प्रतीत होता है कि पुद्गल-स्कन्धों और संसारी जीवोंको सब पर्यायें बाह्य साधनों पर अवलम्बित होनेके कारण उनमेंसे कुछ पर्यायोंका जो क्रम नियत है उसीके अनुसार वे होती है और बीच-बीचमें कुछ पर्यायें अपने नियत क्रमको छोड़कर भी होती हैं। इसकी पुष्टिमें वे लौकिक और अपनी कल्पनाके अनुसार शास्त्रीय प्रमाण भी उपस्थित करते हैं। लौकिक प्रमाणोंको उपस्थित करते हुए वे कहते हैं कि३ लौकिक प्रमाणोंसे अपनी कल्पनाको पुष्टि (१) भारतवर्षमें छह ऋतुओंका होना सुनिश्चित है । साथ ही प्रतिवर्ष अधिकतर ऋतुयें अपने नियत समय पर होती भी है। परन्तु कभीकभी बाह्य प्रकृतिका ऐसा विलक्षण प्रकोप होता है जिससे उनका नियत क्रम उलट-पलट हो जाता है। दूसरा उदाहरण वे अणु बमों और हाइड्रोजन बमो आदि संहारक अस्त्रोंका उपस्थित कर कहते हैं कि इस प्रकारके संहारक अस्त्रोंका प्रयोग करनेसे दुनियाका जो नियत जीवनक्रम चल रहा है वह एक क्षणमें बदलकर बड़ा भारी व्यतिक्रम उपस्थित कर देता है। (२) उनका यह भी कहना है कि वर्तमान कालमें जो विज्ञानकी प्रगति चल रही है उससे कुछ काल बाद जलके स्थानमें स्थल और स्थलके स्थानमें जलरूप विलक्षण परिवर्तन होता हुआ दिखलाई पड़ना
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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