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________________ उभयनिमित्त-मीसांसा स्थित होनेमें अधर्म द्रव्य व्यवहार हेतु हैं। इष्टोपदेशमें माशो 'विज्ञत्वमायाति' यह कथन ऐसे ही क्रियावान् पदार्थोकी व्यवहार हेतुताको धर्म द्रव्यके समान बतलानेके लिए किया गया है । किन्तु इनके सिवाय आगममें ऐसे उद्धरण भी दृष्टिगोचर होते हैं जिनके आधारसे उदासीन व्यवहार हेतुओंसे अतिरिक्त प्रेरक व्यवहार हेतुओंकी स्वतन्त्ररूपसे सिद्ध होती है। उदाहरणार्थ सर्वार्थसिद्धिमें द्रव्य वचन पौद्गलिक क्यों है इसकी पुष्टिमें बतलाया गया है कि भाव वचनरूप सामयंसे युक्त क्रियावान् आत्माके द्वारा प्रेयमाण पूद्गल द्रव्य वचनरूपसे परिणमन करते हैं, इसीलिये द्रव्य वचन पौद्गलिक है। उल्लेख इस प्रकार है तत्सामोपेतेन क्रियावतात्मना प्रेर्यमाणाः पुद्गलाः वाक्त्वेन विपरिणमन्त इति द्रव्यवागपि पौद्गलकी । (अ० ५ सू १९)। तत्त्वार्थवातिकमें भी यह विवेचन इसी प्रकार किया गया है। इसके लिए देखो अ० ५, सू०१७ और १९ ।। इसी प्रकार पञ्चास्तिकाय (गाथा ८५ व ८८ जयसेनीया टीका) और बृहद्रव्यसंग्रह (गाथा १७ व २२ संस्कृत टीका) में भी ऐसे उल्लेख मिलते हैं जो उक्त कथनकी पुष्टिके लिये पर्याप्त हैं। इस प्रकार ये कतिपय उद्धरण हैं जिनके आधारसे ऐसे प्रेरक व्यवहार हेतुओंका समर्थन होता है जो लोकमें चक्षु इन्द्रियसे विलक्षण प्रकार से दूसरे द्रव्योंके कार्यो में व्यवहार हेतु होते हुए देखे जाते हैं। इससे यह स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि यद्यपि चक्षु इन्द्रिय क्रियावान् होकर भी रूपकी उपलब्धिमें प्रेरक बाह्य हेतु भले ही न हो, किन्तु इसका कोई यह अर्थ करे कि जितने भी क्रियावान् पदार्थ हैं वे सब धर्मादि द्रव्योंक समान उदासीन व्यवहार हेतु ही होते है तो यह कथन पूर्वोक्त आगम प्रमाणोसे बाधित हो जाता है, इन्द्रिय प्रत्यक्ष, अनुभव और युक्ति से विचार करने पर भी इस कथनकी सत्यता प्रमाणित नहीं होती। कारण कि लोकमें ऐसे बहुतसे उदाहरण दृष्टिगोचर होते है जिनको ध्यानमें लेनेपर व्यवहारसे प्रेरक निमित्तोंकी सिद्धि होती है। अपने इस कथनकी पुष्टिमें वे वायुका उदाहरण विशेषरूपसे उपस्थित कर कहते हैं कि जिस प्रकार वायुका संचार होनेपर वह ध्वजा आदि अन्य पदार्थों के उड़नेमें व्यवहारसे प्रेरक निमित्त होता है उसी प्रकार सभी प्रेरक निमित्तोंके विषयमें जानना चाहिये । पञ्चास्तिकाय समय व्याख्या टीका से इसकी पुष्टि होती है । यथा
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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