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________________ ४. निश्चयउपादान-मीमांसा उपादान विधि-निरवचन है निमित उपदेश । बस जु जैसे देशमें घरै सु तैसे भेष ।। पण्डित प्रवर बनारसीदासजी] पिछले प्रकरणमें हम बाह्य निमित्त कारणकी सांगोपांग विवेचना कर आये हैं । यह तो निर्विवाद सत्य है कि बाह्य निमित्त कारण ऐसे ही उपकरणमात्र है जैसे राजाको पहिचानके बाह्य साधन छत्र, चमर और विशिष्ट सिंहासन आदि होते है। या भागते हुए चोरके पीछे उसको गिरफ्तमे लेनेके लिए भागते हुए पुलिसके सिपाही आदि होते हैं । इसलिये यह प्रश्न होता है कि स्वयं प्रत्येक द्रव्यकी प्रतिसमय जो पर्याय होती है वह पृथक्-पृथक् या एक सदृश कैसे होती है। उनके वैसा होनेके स्वयं वस्तुनिष्ठ अन्तरंग कोई कारण हैं या केवल बाह्म निमित्त कारणके अनुसार ही वे होती हैं। यदि केवल बाह्य निमित्तोंके अनुसार वस्तुओंकी प्रत्येक पर्यायकी उत्पत्ति मानी जाय तो प्रत्येक वस्तुको स्वरूपसे ही परतन्त्र माननेका प्रसंग उपस्थित होता है। और ऐसी अवस्थामे जीवों की स्वाश्रित बन्ध-मोक्षव्यवस्था, परमाणुओ, धर्मादिचार द्रव्योंकी स्वभाव पर्यायें तथा अभव्यों और दूरादूर भव्योंका निरन्तर संसारी बना रहना नहीं बन सकता। इसलिये प्रत्येक द्रव्यमे उसके अपने-अपने स्वभाव आदिके कारणस्वरूप ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये जिसके कारण प्रत्येक समयका उत्पाद-व्यय स्वयं होता है। प्रत्येक समयके पृथक्-पृथक जो वस्तुनिष्ठ कारण हैं उनकी ही आगममें निश्चय उपादान संज्ञा स्वीकार की गई है। (१) प्रकृत विषयका स्पष्टीकरण प्रकृतमे इस विषयको स्पष्ट करनेके लिए हम सर्व प्रथम घटका उदाहरण लेते हैं। घट मिट्टीकी पर्याय है, क्योंकि घटमें मिट्टीका अन्वय देखा जाता है। इसलिए घटका उपादान मिट्टी कही जाती है। परन्तु यदि केवल मिट्टीसे ही घट बनने लगे तो मिट्टीके बाद घटकी ही उत्पत्ति होनी चाहिए। मिट्टी और घटके बीचमें जो पिण्ड, स्थास, कोश और कुशूल आदिरूप विविध सूक्ष्म और स्थूल पर्यायें होती है वे नहीं होनी चाहिए। माना कि ये सब पर्यायें मिट्टीमय हैं । परन्तु जो मिट्टी खानसे
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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