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________________ जैनतत्त्वमीमांसा ___कर्ता-कर्म आदि समस्त कारकोंके समूहकी प्रक्रियासे पारको प्राप्त निर्मल अनुभूति मात्र होनेसे मैं शुद्ध हूँ। __उक्त समग्र कथनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि मोक्षमार्गीके लिये न तो पर्यायाश्रित विकल्प ही मुक्ति प्राप्तिका यथार्थ साधन है और न ही कर्ता-कर्म आदि रूप कारक विकल्प ही मुक्ति प्राप्तिका यथार्थ साधन है। इस प्रकार समस्त विकल्पोंसे मुक्त होकर जो मात्र अखण्ड एक ज्ञायकस्वरूप आत्माको अनुभवता है वही यथार्थमें मोक्षमार्गी होकर संसारसे मुक्त होता हुआ परमात्मस्वरूप अवस्थाका अधिकारी होकर स्वात्मोत्थ अनन्त सुखका भोक्ता बनता है, इसके सिवाय पराश्रित अन्य जितने उपाय हैं वे सब परमार्थसे संसार तत्त्वको ही बढ़ानेवाले हैं। इसी तथ्यको ध्यानमे रखकर वीतराग सर्वज्ञदेवने अपनी दिव्यान द्वारा जिस मार्गको दर्शाया उसे स्पष्ट करते हुए आचार्य समन्तभद्र स्वयंभूस्तोत्रमें क्या कहते हैं, यह उन्हींके शब्दोंमे पढ़िये यद्वस्तु बाहचं गुण-दोषसूतेनिमित्तमाभ्यन्तरमूलहेतो । अध्यात्मवृत्तस्य तदंगभूतमाभ्यन्तर केवलमप्यल ते ।।५९॥ जिस गुण-दोषकी उत्पत्तिका अभ्यन्तर (निश्चय उपादान रूप आत्मा) ..मूल हेतु है उस कार्यका जो वस्तु निमित्तमात्र है, अध्यात्मवृत्त-मोक्षके Y साधक मोक्षमार्गीकी दृष्टि में वह गौण है, क्योंकि हे जिनेन्द्रदेव आपके शासनके अनुसार मोक्षमार्ग निश्चयनय प्रधान होनसे उस मोक्षमार्गीकी दृष्टिमें अभ्यन्तर हेत हो पर्याप्त है ॥५९॥ और इसीलिये प्रवचनसार गाथा १६ की तत्त्वदीपिका टीकामे स्वयंभू पदकी व्याख्या करते हुए आचार्यदेव अमृतचन्द्र लिखते है-- ___ अतो न निश्चयतः परेण सहात्मन कारकसम्बन्धोऽस्ति, यत शुद्धात्मस्वभावलाभाय सामग्रीमार्णणतया परतन्त्र भूयते । इसलिये निश्चयसे आत्माका परके साथ कारकसम्बन्ध नहीं है, जिससे कि ये जीव शुद्धात्मस्वभावकी प्राप्तिके लिये सामग्रीका अनुसन्धान करनेके प्रयोजनसे परतन्त्र होते हैं। स्पष्ट है कि व्यवहारसे आगममे प्रतिपादित कार्य-कारणपरम्परासे अन्वय-व्यतिरेकके आधारपर कालप्रत्यासत्तिवश बाह्य कारणकी स्वीकृति होनेपर भी जिससे परमार्थस्वरूप कार्य-कारण परम्पराको यथार्थतामें बाधा न आये इसी पद्धतिसे उसका कथन करना परमागममें व्यवहाारसे स्वीकार किया गया है । विज्ञेषु किमधिकम् । JANUA
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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