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________________ २३८ रामायण कुछ चेत जब मन को हुआ, सुत राम से कहने लगी । और अश्रु धार उस दम, नेत्रों से बहने लगी ॥ दोहा ( कौशल्या ) दुखदायी तूने कहा, शब्द विरह का आन । बिना मौत मारा मुझे, लगे कलेजे बान ॥ लगा कलेजे बाण रही, ना शक्ति मेरे बदन में । अन्धकार हो जाय बिना तेरे, सब राज भवन में || देख तुझे सुखकन्द चन्द, खुश रहूं हमेशा मन में । हरगिज न जाने दूंगी, पुत्र मै तुझको बन में ॥ दौड़ मेरा तू एक कुमर है, छोड़ कर चला किधर है । मेरे रो रो कर मइया, बिना विचारे किया काम तैने क्या कुमर कन्हैया || दोहा ( राम ) जान बूझ कर मात तू, क्यों बनती अनजान | यहाँ रहने से न रहे, कुल का गौरव महान् ॥ छंद (राम) 1 राज्य मेरे सामने भाई भरत करता नहीं । ऋण उतारे बिन पिता का भी हमें सरता नहीं || तात प्रतिज्ञा होवे पूरी, सभी मम जाने से जैसे कलह उपशम बने, माता जरा गम खाने से । तन की खातिर धन तजो, दोनों को तज रख प्राण ने ॥ धर्म की खातिर, तुजो, तीनों कहा, जिनराज ने ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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