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________________ (१४) भी वैसा ही है । पूर्वके कर्मोंने वर्तमान स्थिति निर्माण की है। और यदि ऐसा है, तो वर्तमानके कर्म भविष्यकी स्थिति निर्माण करेंगे ही । ये सब बातें हमको पुनर्जन्मके सिद्धान्तपर लाती हैं । पुनर्जन्मके लिये अंग्रेजीमें रीवर्थ, रीइनकारनेशन, ट्रान्समाईग्रेशन और मैटेमोक्रेसीस आदि शब्द हैं। रोइनकारनशेन-का अर्थ "फिरसे मांस होना" होता है। परन्तु वास्तवमें जो जड़ है, वह जड़ ही है और जो स्प्रिट अथवा चेतन है "वह चेतन-आत्मा ही है। कुछ चेतन मांस नहीं बनता है। यदि रीइनकारनेशनका अर्थ फिरसे देह धारण करना अर्थात् मांस होना हो तो रीइनकारनेशन (पुनर्जन्म)ही नहीं हो सके । किन्तु यदि उसका अर्थ ऐसा किया जाय कि कुछ समयके लिये मांसके अन्दर जिन्दगी तो रीइनकारनेशन हो सकता है। रीइनकारनेशनका यह मी अर्थ होता है कि, "फिर फिरसे किसी न किसी पर्यायमें जन्म लेना" मेटेमार्कोसीसका अर्थ ग्रीक भाषामें केवल फेरफार ( रदबदल ) होता है । शरीरों और आत्माओंकी एकत्रावस्थाको प्राणी कहते हैं । यह एकत्रावस्था मनुष्यत्वमें बदल जाती है और वही फिर किसी तीसरी वस्तु (पर्याय ) में बदल जाती है। और इस तरह आगे मेटेमोर्कोसीसका यथार्थ अर्थ होता है । सोल (आत्मा) के ट्रान्सिमाइग्रेशन (जन्मान्तर ) का विचार खास करके क्रिश्चियनोंमें है । मनुष्य आत्माका ( पशु आदि ) प्राणीके शरीरमें जाना यद्यपि जरूरी है परन्तु वास्तवमें एक वस्तमेसे दूसरीमें अर्थात् एक शरीरमेसे दूसरे शरीरमें जानेका नियम है। कुछ यही आवश्यक नहीं है कि, मनुष्य शरीरमेंसे प्राणी शरीरमें ही जाना चाहिये। मतलब जानेसे-भ्रमण
SR No.010284
Book TitleJain Philosophy
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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