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________________ करनेसे है, जावे चाहे जहा । यह वातं साकारका विचार सूचित करती है। क्योंकि जबतक साकार नहीं हो- जवतक कोई स्थान रहनको नहीं चाहिये, तबतक एक स्थानसे दूरसे स्थानको गमन नहीं हो सकता है । इसीसे हमारी फिलासोफीमें (तत्वज्ञानमें) पुनर्जन्मका (रीवर्षका ) सिद्धान्त स्वीकृत है अर्थात् यह माना है कि, आत्मा एक शरीरको छोड़कर किसी दूसरे शरीरमें जन्म लेता है । और जन्मसे कुछ यह मालूम नहीं होता है कि, जिस · अवस्थामें मनुष्य शरीरमें जन्म होता है, वही अवस्था प्रत्येक स्थानमें होगी । नहीं. ऐसी अगणित स्थितियां वा पर्याय हैं, जिनमें मनुष्य जन्म लेते हैं। वीज पक्रनमें कई महिने लगते हैं और उसके पश्चात् उसका जन्म हुआ कहलाता है । इसी प्रकारसे मनुप्य जो कुछ करता है, उसका परिपाक होता है । फिर कोई मनुष्यशक्ति उसको दूसरे गृहमें ले जाती है और इस प्रकार हम कहते हैं कि, जन्मकी वह दूसरी भित्ति है । इसके सिवाय गर्भ धारण करनेकी भी कुछ अवश्यकता नहीं है। कार्माणशरीरमें ही इतनी अधिक शक्तियां है कि, वह स्वयं दुसरा शरीर अपने साथ साथ धारण कर सकता है मनुष्य देहमें सूक्ष्म शरीर और दूसर प्राणियोंकी देहके सूक्ष्म शरीरोंके आकार तथा कट वारवार बदलते रहते हैं। ___ यदि हमने किसी भी जातिमें जीकर उससे विरुद्ध प्रकारके कर्म किय हो, तो यह आवश्यक है कि उन कर्मोंके अनुसार दूसरा जन्म हो । यदि किसीको मनुष्यजातिमें आना हो, तो उसे मनुष्य जाति और मनप्यके योग्य कर्म करना चाहिये । यदि वह ऐसा नहीं करे गा-किसी दूसरी ही जातिके कर्म उपार्जन करेगा, तो वह जुदा ही
SR No.010284
Book TitleJain Philosophy
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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