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________________ कर्पूरप्रकर, अर्थ तथा कथा सहित. २५ के०) आकडाना उधने (पश्येत् के०) जोवे ? अर्थात् खाटी गस तथा आकडाना दूध सामुं जोवेज नहिं, तो नदण तो केमज करे. __ अहिं शय्यंनव स्वामीनी कथा कहे . राजगृही नगरीने विषे मोटी स मृद्धि वालो शय्यंजवनामा नह वसे बे. ते धर्मार्थी थको लोकोने यज्ञ क रावे . एटलामा पोताने पाट योग्य पात्रने जोता एवा प्रनव स्वामी ते ना यज्ञमां बे साधु मोकल्या अने ते साधु बोल्या के अहो कष्ट महोकष्ट तत्त्व कोइ.जाणतुं नथी. एवं वचन सांजलीने शय्यं नवें साधुने पूब्यु. के त त्व ते शं? ते कहो कारण के जैनदर्शनी कल्पांतमां पण असत्य ना षण करता नथी. त्यारें साधुयें कह्यु के अमारा गुरुपासें आवो ते तत्त्व कहेशे ते सांजली तेनी साथे तेमना गुरु आगल गया. अने गुरुने पूब्यु के हे गुरो ! तत्त्व ते झुंजे ? त्यारे युरुये कह्यु के तमारो याजक कहेशे ते सांजली पाना वली तत्काल शय्यं नवें उपाध्यायने पूढे के तत्त्व ते गुंडे ? ते कहो. कारण जैनो कल्पना अंतमां पण असत्य बोलता नथी. माटे जो तमे सत्य नहि कहो तो शिरवेदमांज तत्त्व जे एम वेदवाक्य ने माटे त मारुं शिर छेदी नाखीश. एम कही हाथमा खड्ग नपाड्युं तेवार याझिको ये तेना यइस्तंननी नीचें रहेली शांतिनाथनी प्रतिमा देखाडी तेवारें श य्यंनव स्वामी प्रतिबोध पामीने सगर्ना स्त्रीने मुकीने गुरुनी पासे व्रतय हण करी अनुक्रमें थाचार्यपद पाम्या. तेमना पुत्र मनकनुं शेष महीना नुं बायु रह्यं तेवारें पोताना पुत्रने माटे दशवकालिक रच्यु. ब मासनी दीदा पालीने ते मनक पण देवलोकें गयो ॥ २१ ॥ लब्धे जडः कोपि दितेऽपि धर्मे, स्तोत्यहसौ ख्यानि शशीव राजा ॥न पंकजं नेक उपैति पंकं, क्रमेलकोनामुपैति निंबम् ॥२२॥ अर्थः-(कोपि के० ) कोइ पण (जडः के०) मूर्ख प्राणी, (हिते के०) हित करनार एवा (धर्मपि लब्धे के०) धर्म प्राप्त थये बते पण ( शशी के०) शशी नामा (राजा के०) राजानी (श्व के०) जेम (अदसौख्यानि के०) इंडियोनां सुखने (स्तौति के०) वखाणे. अर्थात् शशीराजा जिनधर्म पाम्या पली पण इंडियसुखने माटे आकांदी थयो तेनी पेठे ते जड पण
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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