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________________ २६ जैनकथा रत्नकोष भाग पांचमो थाय ते. यांही दृष्टांत कहे बे के जेम (नेकः के० ) मेडको ( पंकजं के० ) कमलने (पैति के० ) प्राप्त थातो नथी परंतु ( पंकं के० ) गाराने प्राप्त थाय बे तथा ( क्रमेलकः के०) उंट ते ( यानं के० ) यांबाने ( नवपैति के० ) नथी प्राप्त थातो परंतु (निंबं के ० ) निंबवृदने प्राप्त थाय ते ॥ यांही शशीराजानी कथा कहे बे. शुक्तिमती पुरीने विषे सूर ने श शी बे नाइ राज्य करता हता एकदिवसें बेहुजण उद्यानने विषे श्रीशील सागर उपाध्यायनी पासें धर्मनी देशना सांजलता हता, तेमां या श्लोक श्रव को ते जेम के ॥ मानुषं नवमवाप्य दक्षिणा, वर्त्त शंखमिव ये नवांबुधौ ॥ पूरयेत्सुकृतगांगवारिणा, पापवृत्तिसुरया न चोत्तमः ॥ नावार्थ:- जे जी व मनुष्य देह पामीने नवांबुधिने विषे दक्षिणावर्त्त शंखनी पेठें सुकृतरूप गंगाजल ने पूरे, ते उत्तमजीव जाणवो. तथा जे जीव जवांबुधिने विषे मनुष्यदे रूप दक्षिणावर्त्त शंखने पापवृत्तिरूप मदिरायें करीने नरे ले ते जीव न. त्तम नहिं ॥ या गुरुवाक्य सांजलीने सुरराजा बोध पाम्यो अने ध मचरण करवा लाग्यो ने शशी राजा उपदेश समजीने इंडियसुखने नो वे बे, परंतु धर्मनुं याचरण करतो नथी. पती वृद्धनाइयें घणो समजाव्यो तो पण ते विषयासक्ति बोडी नही. पढी तेमरण पामी नरकें गयो. अने सूरराजा स्वर्गे गयो. त्यां अवधिज्ञानें करी नाइने नरकमां पडेलो जोयो तेवारें ते देव पोतें त्यां नरकमां गयो ते सूर राजानी समृद्धि जोड़ने शशी राजा पश्चात्ताप करे बे ने नाइने कहे बे के हे जाइ ! त्यां जश्ने मारा देह भेदन करो बेदन करो ने मने स्वर्गसुख मजे, तेम करो. ते सांन लीने तेने महोटो जाइ कहेवा लाग्यो के हे नाइ ! जीवरहित जडदेहनी कदर्थना करे गुंथाय ? पूर्वजन्में जीव होय तेवारें कष्ट कर होय तोज तेने सुख मजे, हवे चुं मजे ? एम कहीने ते देव पोताना स्थानक प्रत्ये गयो. कयुं वे के ॥ नरयबो ससिराया, बहु नगइ देह जालपा सुहिने ॥ प डिम नए जाउ, अंतो मे जाय तं देहं ॥ १ ॥ को तेरा जीवरहिए, ए संपयं जाइए हुक गुणो ॥ जइसि पुरा जायंतो, तो नरए नेव निवडं तो ॥ २ ॥ जावा नसावसेसं, जावय थोवोवि वि विवसा ॥ ताव करि ऊ पहिां, माससिराया वसोहेसि ॥ २२ ॥
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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