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________________ कर्पूरप्रकर, अर्थ तथा कथा सहित. ए एवो सादात् पोतें ब्रह्मा थ बेतो तेने एक सुलसाविना बीजी सर्व प्र जा प्रणाम करवा माटे अावी. तदनंतर बीजे दिवसें दक्षिण प्रतोलीनेविषे गरुडपर बेठेला, लक्ष्मी सहवर्तमान सुशोनित तथा पीतांबरधारी, श्या मशरीरवाला अने चार हाथने विषे शंख, चक्र, गदा, पद्म, तेने धारण कर नारा एवा सादात् वैक्रिय शक्तिथी विष्णु थ बेतो. तेना दर्शन करवां प ण सुलसा शिवाय सर्वलोक गयां, पनी त्रीजे दिवसें पश्चिम प्रतोलिकानेविषे वृषनना वाहनवाला, तथा पार्वती अगें होवाथी शोलायमान, जस्में करी नहलित अंगवाला, कंठनेविषे मरेला मनुष्यना तुंबडानी माला पेहे रनारा, जटा जूटथी सुशोनित मस्तकवाला त्रिशूलने धारण करनार, क र्पूर गौर शरीर वाला, एवा सादात् शंकरर्नु रूपवैक्रिय शक्तिथी कयुं तेनां दर्शन करवा सर्वसुलसा विना गया. तदनंतर वली चोथा दिवसनेविषे उत्तर प्रतोलीने विषे सोनाना, रूपाना,अने रत्नना एत्रण प्राकारना मध्यनेविषे दिव्यसिंहासनपर बेवेला, मस्तकनपर त्रणं बत्रने धारण करनार, नामम ल, धर्मध्वज, अशोकवृद, धर्मचक्रादि समृदियें करी संशोजित, सुर असु र किन्नर तेनी कोडा कोडीये सेव्यमान, पचवीशमो हुँ तीर्थकर एवो जगत्मां उद्घोष करावतो सादात् पोतेंज तीर्थकर थतो हवो ते दिवसें तेने वांदवा माटे ते गामना सर्व श्रावको व्या, परंतु सुलसा श्राविका ग नही. पड़ी ते अंबडे सुलसाने घेर जश्ने नमस्कार कस्यो अने कह्यु के तुने धन्य के कारण के श्रीवीरनगवान पण तारा धर्मने वखाणे . ३ त्यादि वीरनगवाने करेली एवी प्रशंसा सर्वजन सानले. तेम अंबडे कहीने ते पोते पण दृढ सम्यक्त्वी थतो हवो ॥ १६ ॥ दूरेईतोस्तु महनादि नतीबयापि, श्रेयः सुरोजनि न सेडुकदरः किं ॥ कल्पमः स्मरणतोपि न किं फलाय, पार्थेपि वामृगमदोनहि सौरनाय ॥१७॥ अर्थः- (अर्हतः के०) वीतरागर्नु (महनादि के०) पूजनादिक तो (दूरेऽस्तु के०) दूर रहो. परंतु (नतीचयापि के०) नमन वांडनायें करी ने पण (श्रेयः के०) कल्याण थाय. तेमां आश्चर्य नथी. केम के (सेडुकद धुरोपि के ) सेडुकनामा ब्राह्मणनो जीव, दर्डर थयो बतो पण नमन वांड
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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