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________________ २७ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. श्रावक थक्ने प्रवेश कस्यो. वंदन स्थानकनेविष अजयकुमारने जुहार कस्यो. पनी अनय कुमार रौहिणियाने साधर्मिकना मिषे पोताने घेर तेडी जश्ने नोजन करवा बेसाड्यो नोजनानंतर दहीमा नाखेला सुरापानें करी तेने अचेतन करी नाख्यो पूर्व घणुंज सारं धवल करेलुं घर हतुं तेमां शय्यामां सुवास्यो, ज्यारें जाग्यो,त्यारे जीवता रहो आनंद रहो एम बोलती एवीने चामर नाखती एवी देवांगना तुव्य वारांगनाउनी साथें वार्ता करवा लाग्यो. तदर्शनं किमपि सा सुलसाप येन, प्रादाजिनोपिम हिमानममानमस्यै ॥ नैर्मल्यतः शशिकला नवकेत कीत्वं, मालातुलां च हरमूर्ध्नि बनार गंगा ॥१६॥ अर्थः-(तत् के०) ते ( किमपि के.) अपूर्व एवा (दर्शनं के) स म्यक्त्वदर्शनने (सा के०) ते (सुलसा के०) सुलसानामनी श्राविका (आप के ) पामती हवी. (येन के) जे सम्यक्त्वे करीने (अस्यै के०) ए सुलसाने (जिनोपि के०) जिननगवान् पण (अमानं के०) जेनुं प्र माण नथी एवा (महिमानं के०) महिमाने (प्रादात् के०) आपता हवा अर्थात् सुलसा श्राविकाना सम्यक्त्वने महावीर नगवाने वखाण्युं ते सम्य क्त्वनुं फल . त्यां दृष्टांत कहे ठे. ( शशिकला के०) चश्मानीकला तथा (गंगा के० ) गंगा ते (नैर्मव्यतः के०) निर्मल पणाथी अनुक्रमें ( हरमूर्ध्नि के०) शंकरना मस्तकनी उपर ( नवकेतकीत्वं के० ) नव केत कीपणाने (च के० ) वली (मालातुलां के०) मालानी तुव्यताने (बचा र के०) धारण करती हवी. अर्थात् ईश्वरना मस्तकने विषे चंकला केत की रूपने झुं नथी धारण करती ? तथा गंगा जे ले ते कुसुममालानी तुल्य ताने गुं धारण करती नथी ? ना करे ॥ याहिं सुलसानी कथा कहे जे. राजगृहीनगरीनेविषे दायिक सम्य क्त्व धारणकरनारी शीलालंकारें नूषित एवी सुलसा नामनी श्राविका रहे ती हती एकदिवस अंबडनामा परिव्राजकना मुखथी श्रीवीरनगवाने धर्म लान ते सुलसाने कहेवराव्यो अंबड नामा पारिव्राजक राजगृहीमा जश्ने प्रथमना दिवसमां वैक्रिय शक्तियें करी पूर्व प्रतोलीमा चार मुखेंथी चार वेदनो उच्चार करतो हंसवाहनपर बेतो अने अगिमां सावित्री ने जेने
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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