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________________ कर्पूरप्रकर, अर्थ तयां कथा सहित. १७ डा अने वज जेवा मुखवाली कीडीयोयें पादादिकथा आरंजीने शिरपर्यंत फो ली खाधुं चारणी जेवू शरीर कीg. एरीतें साडा त्रण दिवस उपसर्गने स हन करीने सहस्रार देवलोकनेविषे देवता थयो. एम थोडा अदना उप देशथकी चिलातीपुत्र महापापी हतो तोपण देवता थयो, माटे थोडो प ण धर्मोपदेश सुखदायक जे एम जाणवू ॥ १४॥ देषेऽपि बोधकवचः श्रवणं विधाय, स्याशैदिणेय श्व जंतुरुदारलानः॥ क्वाथोऽप्रियोपि सरुजां सुख दो रविर्वा, संतापकोपि जगदंगनृतां हिताय॥१५॥ अर्थः-(षेपि के०) पिनेविषे पण एटले मननी अरुचिमां पण (जंतुः के०) जीव (बोधकवचः के०) बोधकारक वाक्यतुं ( श्रवणं के०) श्रवणने (विधाय के०) करीने अर्थात् बोधकारक वचन सांजल्युं होय तो हितने माटे थाय. (यथा के०) जेम (काथः के०) क्वाथ (अप्रियोऽपि के०) कडवो ने तो पण (सरुजां के०) सरोगीजनने ( सुखदः के०) सुखदायक (स्या त् के०) थाय ( वा के०) तथा ( रविः के० ) सूर्य (संतापकोपि के०) संतापकारक के तो पण (जगदंगनृतां के०) जगतने विपे प्राणीयोना (हि ताय के०) हितने माटे थाय बे. केनी पेठे ? तोके (नदारलानः के०) महो टो थयो लान जेने एवो (रौहिणेयश्व के०) रौहिणिया चोरनी पेठे ॥१४॥ __ आहिं रौहिणिया चोरनी कथा कहे . राजगृहीनेविषे विनारगिरि पर्व तमा रूप्यखुरनो पुत्र लोहखुरनामा कोइक चोर रहेतो हतो,ते मरणना स मयंनेविषे पोताना पुत्र रोहिणियानी पासें कहे के धूर्त एवा श्रीमहावी रस्वामीनुं वचन तारे क्यारेपण सांजल नहिं ते वचन तेणें कबुल कयुं. तदनंतर लोहखुरो चोर मरण पाम्यो पड़ी रौहिणियो एकदिवस रस्तामां चा व्यो जाय तेटलामां वीरस्वामीनी योजनगामिनी वाणीने सांजली तेमां या गाथा सांजली जेम केः-” अणमिसनयणा मणक,ऊसाहणा पुप्फदा म अमिलाणा ॥ चतरंगुलेण नूमि, न बिबिंति सुरा जिया बिंति ॥१॥ आ गाथा सांजली तेने घणी वीसारे ने तो पण ते विस्मरण थाती नथी. हवे ते चोर श्रेष्ठी थश्ने राजगृहने विषे फरे ने थने अनयकुमारने प्रणाम कस्या विना जमतो नथी. एकदिवस जिनमंदिरमा वेवेला अनयकुमारनी पासें
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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