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________________ १२० जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. ता नथी. तेम द्यूतमां पण पूर्वोक्त गुणो दृश्यमान थता नथी, ए नावार्थ जे. __ अांहिं पांच पांमवोनी कथा कहे . कुरुदेशमा हस्तिनापुर नगरने विषे युधिष्ठिर राजा, नीम, अर्जुन, सहदेव अने नकुल ते चार नाइये सह वर्तमान पोतें साम्राज्यश्रीने जोगवता हता. एक दिवस पोताना नवीन करावेला श्रीशांतिनाथजीना देरासरनी प्रतिष्ठा करवाना महोत्सवने अर्थे पत्रधारायें हस्तिनापुरथकी कुर्योधनादिकने तेडाव्या, त्यां प्रतिष्ठाना नवन वा महोत्सव थ रह्या नंतर मणिचूड विद्याधरें सहस्र स्तंनयुक्त निर्माण करेली सनाने विषे कौरवो तथा पांवो मलीने द्यूत रमवा लाग्या, तेने तेमना काका विरजीयें घणी रीतें रमवानो निषेध कस्यो, तो पण पांडवो तथा कौरवो द्यूत रमवाथी विराम पाम्या नहिं, पड़ी शकुनियें नाखेला दे वाधिष्ठित पाशावें करी दुर्योधन पांमवना राज्यने हरण करतो.हवो. अनु कमें शैपदीने पण हारी गया, तेवारें नीष्मादिकें तेराव्युं के पांमवो बार वरस वनमा रहे तथा, एक वरस नाना को जाणे नहिं एवीरीतें रहे, ते प्रमाणे पांमवो बार वर्ष वनवासमा रह्या अने एक वरस रूपांतर करीने वैराट नगरमा बाना रह्या. पडी कौरवो साथें युद्ध करी कौरवोनो पराज य करी राज्यने प्राप्त थया. ए प्रमाणे द्यूतमां दुःख जे एम जाणवू ॥१०॥ द्यूतं न किं त्यजत किं दहत स्वदेदं, गगं च मूत्रयसि किं वदने स्वकीये ॥ तत्तादृशी प्रियतमासहितोनलोपि, जानीत रोरश्व राज्यसुखानिरस्तः॥२०॥द्यूतप्रकरणम्॥ अर्थः- हे मूढजनो! (यूतं के० ) द्यूतने (किं के०) केम (नत्यजत के०) त्याग करता नथी तथा (किं के०) शामाटे (स्वदेहं के०) पोता ना देहने (दहत के०) द्यूतानियें करीने बालो बो. (च के०) वली (बागं के०) बकराने (स्वकीये वदने के०) पोताना मुखने विषे (किं के०) शा माटे (मूत्रयसि के० ) मूत्रावो गे जुवो (तत् के ) ते माटे (तादृशी के०) तेवी (प्रियतमा के०) वनन एवी पोतानी स्त्री दमयंतीये ( सहितः के ) सहित एवो (नलः अपि के०) नलराजा पण (राज्यसुखात् के) राज्यसुखथकी यूतें कर। (निरस्तः के०) भ्रष्ट थयो बतो (रोरश्व के०) जेम दरिडी होय तेनी पेठे थयो. एम (जानीत के०) हे जनो तमो जाणो॥१६॥
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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