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________________ कर्पूरप्रकर, अर्थ तथा कथा सदित. २२॥ याहिं नलराजानी कथा कहे जे. नलराजा त्रणखमनो अधिपति हतो एकदिवस राजने विषे लोन पामेला कुबर नामा पोताना नाइ साथै नलरा द्यूत रमतां दैववशे राज्य हारी गयो. पड़ी दमयंती सहित वनमा गयो, मार्गमां विचायुं जे ढुं झुं आवा हालें सासराने घेर जावं, एम विचारीने दमयंतीने वनमां सूतेली मूकीने जातो रह्यो, पाउलथी जेवारें दमयंती जागी तेवारें बहुविलाप कस्यो, मार्गमा सार्थवाहनुं धाडीथी रक्षण कयुं, पली पर्वतनी गुफामा रहिने पांचशे तापसने बोध कस्यो, सात वरस त्यां रहि. पनी पोतानी मासीनी दीकरीने घेर गइ, नलराजा पण देवप्रयोगें करी विरूपांग कुन थयो, सुसमार पुरमां दधीपर्ण राजानी पासें रसोयो थइने दस वरस पर्यत रह्यो. अने दमयंती पण पोतानी फश्ने त्यां बह अहम तप करती रही पनी पोतांना बापने घेर गइ. नलराजा पण त्यां ते दमयंती साथें मल्या, वली पण द्यूत रमाडीने पावू पोतानुं राज्य कुबर पासेंथी लइ लीधुं, माटे सर्वथा यूत रमवू नहिं ॥ १०६ ॥ मांसाशनान्ननरकएव ततः सदेव, स्तल्लोलुपं दरि नृपं कृतवान्सरोपः ॥ किंपाकपेशलतराशनदत्तत प्णे, किंपाकनोजिनि मृतेरपि संशयोस्ति ॥१०॥ अर्थः-(मांसाशनात् के०) मांसाशन थकी (नरकएव के०) नरकज होय, (ततः के०) तेमाटे (सरोषः के०) रोषयुक्त एवो (सः के० ) ते (देवः के०) देव ( हरिनृपं के० ) हरिनामना राजाने (तल्लोलुपं के० ) ते मांसनाथशनमा लोलुप एवो (कतवान् के०) करतो हवो, (पाकपे शलतराशनदत्ततृष्णे के०) पाकें करीने अत्यंत मनोहर एवं डे अशन जेनुं एवा पदार्थने विषे दीधी ने तृष्णा जेणे एवा ते (किंपाकनोजिनि के०) विष वृदना फलनुं जोजन करनारने विषे (मृतेरपि के०) मरणनो पण (संशयः के०) संदेह (किं के० ) झुं (अस्ति के० ) . ना नथीज. एटले फेर खा नारने विषे मरण संदेह होयज नहिं एम जाणवू ॥ १७ ॥ हिं हरिनृपनी कथा कहे . मधुपिंगलनो जीव अने बीजो हरिन पनो जीव ए बेडु पूर्वनवना वैरें करी मरण पामी, एक हरिवर्ष क्षेत्रमा युगलीक थयो, अने एक देवता थयो, परंतु ते तेनो वैरी जीव युगलीक
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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