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________________ कर्पूरप्रकर, अर्थ तथा कथा सहित. १२७ हवे स्यूजिलश्नी कथा पूर्व कहेली पूर्वे ,तथापि प्रकारांतरथी वली कहे बे. एक दिवस श्रीनबादुस्वामीनी पासें स्थूलिनश्नी बेहेनो यदादि या र्यायें कह्यु के हे जगवन ! स्थूलिन हाल क्या ? त्यारें गुरुयें कडं के, अशोकवनने विषे पूर्वोनी गणना करतो तो रह्यो बे,त्यारें सर्वे साध्वीयो तेने वांदवा माटे अशोकवनमा गइ, त्यां पोतानी वेनोने आवती जोड्ने स्यूलिन पोतानी विद्यानी परीक्षा करवा माटे सिंहनुं रूप विकुर्वीने स न्मुख आव्यो तेने जोक्ने सर्व साध्वी त्यांची नाशीने गुरुनी पासें आवी कहेवा लागी के हे जगवन् ! स्थूलिनाने तो सिंह नदण करी गयो. ते सां जली गुरुये कह्यु के हजी त्यांज स्थूलिनजी . बीजी वार तेनी बेनोयें जश्ने वंदन कस्युं पली गुरुयें जाण्यु एनाथी विद्या जीरवाती नथी माटे हवे पूर्व नणाववां नही तो पण श्री संघना नपरोधथकी चार पूर्व मूलपा वें गुरुयें जणाव्यां, परंतु अर्थथकी नणाव्यां नहिं ए. स्यूलिननी कथा कही. द्यूतेनार्थयशः कुलकमकलासौंदर्यतेजःसुहृत्, सा धूपासनधर्मचिंतनगुणा नश्यति संतोपि दि॥ यह त्पांमुसुतेषु तच्युतसुधीप्वादित्यनावर्जिते, विश्वे किं तमसा स्फुटं घटपटस्तंनादि वा लयते ॥१०॥ अर्थः-(संतःअपि के०) विद्यमान एवा पण (अर्थ के०) धन अथवा शास्त्रना अर्थ ( यशः के) यश (कुलक्रमः के०) कुलाचार, (कला के०) लिखित, पवित, गीत, वाद्यादिक बहोंतेर कला, ( सौंदर्य के० ) सुंदरपणुं ( तेजः के० ) तेज, ( सुहृत् के०) सुमित्र, ( साधूपासन के०) गुरुपर्यु पास्ति, (धर्मचिंतन के०) दानशीलादि धर्मचिंता, एवा (गुणाः के०) गुणो (यूतेन के०) द्यूतें करी (हि के० ) निश्चे ( नश्यंति के० ) नाश पामे . केनी पेठे ? तो के ( यत् के०) जेम ( पांमुसुतेषु के० ) पांच पांडवोने विषे. ते केवा पांवो ? तो के (तच्युतसुधीषु के०) ते द्यूतथकी भ्रष्ट थ ले बुद्धि जेनी एवा . कवि कहे जे के (आदित्यनावर्जिते के०) आ दित्यनी कांतिथी रहित एवा ( विश्वे के० ) विश्वने विषे ( तमसा के०) अंधकारें करी ( स्फुट के०) प्रगट पणे ( किंवा के० ) गुं वारं. (घटपट स्तंनादि के० ) घट, पट, स्तनादिक (लदयते के०) लक्ष्य थाय . ना थ
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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