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________________ जेन जगती, ॐ परिशिष्ट , *DOORNERAL अश्वमेध-यज्ञ के अवसर पर जो इन दोनों भाईयों ने शौर्य दिखाया वह सर्वत्र प्रसिद्ध है। ____४३-अभिमन्यु-यह अर्जुन का पुत्र था। इसके पराक्रम को कौन मनुष्य ऐसा है जो नहीं जानता है । कुरुक्षेत्र के महासमर में इस षोड़श वर्षीय कुमार ने सप्त महारथियों के भी दाँत खट्टे कर दिये थे। फिर अन्त में यह अधर्म नीति से मारा गया था। ४४-भगवान नेमिनाथ-ये समुद्रविजय के पुत्र और श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे। ये २२ वें तीर्थंकर थे। जब आप अश्वारूद होकर उग्रसेन की पुत्री राजीमती से पाणी-पीड़न करने के लिये श्वशुर-गृह को तोरण-बध हित जा रहे थे कि आपने बीच में से ही अश्व को पशुगृह में अगणित पशुओं को बन्धी देखकर और यह जानकर कि इन्हीं पशुओं के आमिष का वरातिथियों को भोजन दिया जायगा, मोड़ दिया और आप सीधे गिरनार पर्वत पर चढ़ गये और संसार छोड़ कर दीक्षा ग्रहण कर ली। ऐसे उदाहरण संसार में बहुत कम हैं । विशेष वर्णन के लिये देखो वि० श० पु० चरित्र भाग ८ वाँ। ४५-भगवान महावीर-ये हमारे अन्तिम तीर्थकर हैं। जितने उपसर्ग भगवान वीर ने सहन किये, उतने संसार में शायद ही किसी महात्मा ने सहन किये हों। चण्ड कोशिक सर्प ने इन्हें कायोत्सर्ग में काटा, कायोत्सर्ग में ही आप के कानों में ग्वालों ने तीक्ष्ण कीलें ठौके; अनार्य देश में असंख्य पापको कष्ट सहन करने पड़े, दुष्ट गोशाला ने भापको सर्वायुभर दुःख २०४
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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