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________________ जैन जगती • परिशिष्ट दिया। उपसर्गों का नाम मात्र गिनाने के लिये भी एक दस्ता कागज चाहिए । देखो त्रि० श० पु० चरित्र भाग १० वाँ। ४६--भगवान पार्श्वनाथ-तक जो हमारे २३ वें तीर्थकर हैं जैन-इतिहास सरलता से उपलब्ध है। कठिनतया अब अब ऐतिहासिक शोध भगवान् नेमिनाथ तक जाती है। इसके पूर्व का समस्त इतिहास अन्धकार में है। संभव है आगे जाकर पता आगे जा सके। ४७-गजसुकुमाल-ये वें वासुदेव श्रीकृष्ण के बोटे भाई थे। इनके श्वशुर शोमशर्मा ने इनके शिर पर जब कि ये ध्यानस्थ कायोत्सर्ग में श्मशान क्षेत्र में खड़े थे, सजग अंगारे रख दिये थे। फिर भी आप ध्यानस्थ रहे और अन्त में अन्तकृत केवली होकर आप मोक्ष-पद को प्राप्त हुए। ४८-मेतार्यमुनि-ये परम दयालु थे। आपने अपने प्राण देकर भी सुवर्ण जौ चुगने वाले क्रौंच पक्षी की प्राण-रक्षा की थी। ४-अर्णिका पुत्र-ये बड़े समता भावी थे। एक नाविक ने आपको गङ्गा की जल-धारा में फेंक दिया था जब कि पाप नाव में बैठे हुए गंगा पार कर रहे थे। परन्तु आपने उस पर तनिक भी आक्रोष नहीं किया। अन्त में अन्तकृत-केवली होकर आप मोक्ष गये। ५०-खन्दकऋषि-ये बड़े समताप्राण थे। राजाज्ञा से आपकी चर्म उतारी गई थी, लेकिन आपने समताभाव नहीं २०५
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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