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________________ जैन जगती परिशिष्ट भाई थे । रामचन्द्र के वनवास चले जाने पर भी भरत ने अयोध्या का राज्य रामचन्द्र ही के नाम से किया था । भरत से भाई आज तक फिर नहीं हुए। ३५-३६-अर्जुन, भीम-ये कुन्ती के पुत्र और धर्मराज युधिष्ठिर के छोटे भाई थे। इनका शौर्य्य जग-विख्यात है। ये पाँच भाई थे । अन्त में पाँचों भाई संयम-व्रत ग्रहण कर सिद्धाचल पर चले गये थे । विशेष के लिये देखो 'जैन महाभारत' (गुजराती में)। ३७-युधिष्ठिर-नं०३६ को देखो। इनके धर्म-तेज से इनका रथ चलते समय भूमि से एक बालिस्त ऊपर रहता था। ३८-नं० ४ को देखिये। __३६-कर्ण-ये कुमारी कुन्ती के पुत्र थे। ये बड़े वीर व दानी थे । मृत्यु-शैय्या पर पड़े हुए भी इन्होंने भिक्षुक को रिक्तकर नहीं लौटने दिया और अपने मुंह से चूप निकाल कर उसे प्रदान की। ४०-राजर्षि बली-चक्रवर्ती महापद्मकुमार ही हिन्द-प्रन्थों में राजा बली के नाम से प्रसिद्ध है। शेष दोनों ओर के ग्रन्थों की घटना एक है। देखो 'त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र भाग ६ वा' (गुजराती में)। ४१-श्री कृष्ण-ये. वे वासुदेव थे। देखो त्रि० श.पु. चरित्र भाग वाँ। ४२--लक-कुशान्ये रामचन्द्र जी के पुत्र थे। रामचन्द्र जी के २०३
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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